इस आर्टिकल की पहली क़िस्त में पाकिस्तानी हिन्दू डॉक्टर्स के भारत आगमन, नागरिकता की प्रोसेस और काम मिलने की कहानी का जिक्र है. यहाँ प्रस्तुत है इसकी दूसरी क़िस्त…
पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टर्स की मूल समस्या क्या है?
पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टर को भारत की नागरिकता मिल जाने के बाद MCI उन्हें सेवा करने की अनुमति देना बंद कर देता है और उनकी डॉक्टरी की डिग्री भी लगभग कागज के टुकड़े समान मान ली जाती है.
उस डिग्री को भारत के अनुसंधान में वैद्य करवाने के लिए डॉक्टर्स को एक स्क्रीनिंग टेस्ट देने के लिए कहा जाता है जिसमे कम से कम 50% मार्क्स लाने होते हैं! इस टेस्ट को FMGE यानि ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन’ कहते हैं.
FMGE को 2002 में इंट्रोड्यूस किया आया था जब गुजरात के केतन देसाई MCI के अध्यक्ष थे. इस टेस्ट का मुख्य मकसद भारतीय छात्रों को डॉक्टरी की पढाई के लिए दूसरे देशो में जाने से रोकना था.
चूँकि उस समय भारत से MBBS की डिग्री लेना काफ़ी महंगा हुआ करता था इसलिए भारतीय छात्र सोवियत संघ, पूर्वी यूरोपीय देशों, चीन, नेपाल, फिलीपींस, और कैरीबियाई देशों से डिग्री वापस लेकर भारत आ जाते थे.
FMGE के आगमन के बाद काफी हद तक बहार जाने वाले छात्रों में कमी आई लेकिन फिर भी जो जा रहे हैं वे पढाई पूरी करके भारत आते हैं और आते ही FMGE टेस्ट दे देते हैं और उनकी प्रैक्टिस शुरू हो जाती है.
चूँकि यह टेस्ट सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही लागू होती है इस वजह से पाकिस्तान का प्रवासी हिन्दू-डॉक्टर इस टेस्ट के लिए एलिजिबल ही नहीं होता है. एलिजिबल होने के लिए उसे भारत की नागरिकता प्राप्त करनी होती है और नागरिकता प्राप्त करने में तो उसे कम से कम 10 साल का समय लग जाता है! तो अब डिग्री लेने के 10-20 साल बाद दोबारा उसी तरह की पढाई करना और स्क्रीनिंग टेस्ट में पास होना कितना सही है आप ही सोच लीजिये!
दूसरा, FMGE पूरा फंडा सोवियत संघ, पूर्वी यूरोपीय देशों, चीन, नेपाल, फिलीपींस, और कैरीबियाई देशों से मेडिकल डिग्री प्राप्त करे हुए छात्रों के लिए था क्योंकि वहाँ का मेडिकल एजुकेशन बिलो-स्टैण्डर्ड है और वहाँ मेडिकल इंस्टिट्यूट और स्कूल्स हैं, यूनिवर्सिटीज नहीं हैं. इस सूची में पाकिस्तान का नाम कहीं नहीं था. क्योंकि पाकिस्तान की मेडिकल पढ़ाई भारत के समक्ष है और वहां भी भारत की तरह यूनिवर्सिटीज हैं. यही वजह है कि 2002 से पहले तक पाकिस्तान से आये हिन्दू-डॉक्टर्स को भारत की नागरिकता मिलते ही मेडिकल कॉउंसिल से परमानेंट रजिस्ट्रेशन मिल जाता था. लेकिन FMGE लागू करने की जल्दबाजी में इस पाकिस्तान से पलायन कर आये हिन्दू-डॉक्टर्स के मुद्दे पर गौर किया ही नहीं गया.
आपको यहाँ बता दूँ कि FMGE को पहले भी भारतीय अदालतों में चुनौती दी जा चुकी है. समय-समय पर इस टेस्ट के खिलाफ अनुचितता और पारदर्शिता की कमी के आरोप लगते आये हैं. यही नहीं, केतन देसाई जिनकी अध्यक्षता में FMGE बहाल किया गया था उनकी भी भ्रष्टाचार अधिनियम कानून के तहत 15 मई 2010 को गिरफ़्तारी हुई थी जिसके बाद 22 मई 2010 को MCI को भारत के राष्ट्रपति द्वारा भंग कर दिया गया था.
तो अब आप समझ रहे होंगे कि पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टर्स के मसले में एरर कहाँ हैं! आप ही सोचिये एक व्यक्ति दिन-रात मेहनत कर के MBBS की डिग्री लेता है और पढाई छूट जाने के 10-20 साल बाद उसको दोबारा उसी तरह की टेस्ट पास करने के लिए कहा जाता है, क्या ये लॉजिकल है?
MCI के उस टेस्ट का पिछले दस साल का एवरेज निकाला जाये तो 10% ही पासिंग रेश्यो है! एक अपवाद के तौर पर देखा जाये तो लास्ट टाइम जून में 26% डॉक्टर्स पास हुए थे.
आप समझिये, आज मेरी इंजीनियरिंग, आपकी बीकॉम या किसी तीसरे की लॉ की पढाई पास करने के 10-20 साल बाद कहा जाये कि “भैया अब तुम्हारी ये डिग्रियां वैध नहीं है इसलिए एक काम करो दोबारा पास कर लो” तो क्या हम पास कर पाएंगे??
और ये तो डॉक्टरी है भाई! एक इंसान डॉक्टर कैसे बनता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है! इतना आसान होता डॉक्टर बनना तो भारत में डॉक्टरों की शॉर्टेज ना होती!
अहमदाबाद में रह रहे पाकिस्तान से आये डॉक्टर सुनील कहते हैं कि
MBBS बनना कोई छोटी बात नहीं है! उस ज़माने में मैं दिन-रात पढाई करता था. खाना-पीना-सोना भूल गया था. तब जाके मुझे ये डिग्री मिल थी. अब उस वाकये के 10 साल बाद मुझे कहा जा रहा है कि आप दोबारा उस तरह की एक टेस्ट पास कर लीजिये तो यह कैसे संभव है? क्या मैं 10 साल पहले वाली मेहनत फिरसे कर पाउँगा? और मैं तो करने के लिए भी तैयार हूँ लेकिन तब तक मैं मेरे परिवार को कैसे पालूंगा?
डॉ. नमक राम राइजा ने 1980 में पाकिस्तान से MBBS पास किया था. 2004 में वे भारत आये और 12 साल बाद 2016 में उन्हें भारत की नागरिकता मिली. आज उनकी उम्र 65 वर्ष है. अब जरा सोचिये 38 साल पहले उन्होंने जो पढाई की थी क्या वे इस उम्र में कर पाएंगे? नहीं ना! फिर भी उन्होंने टेस्ट दी थी जिसमे उनको 150 मार्क्स चाहिए थे लेकिन 148 ही आये!
डॉ. राजकुमार भी इसी तरह की समस्या से झूझ रहे हैं. उन्होंने 1987 में MBBS पास किया था. 2009 में वे भारत आये और 2017 में उन्हें भारत की नागरिकता मिली! वे आज 55 वर्ष के हैं और करीब 31 साल पहले उन्होंने जो पढाई की थी अब उसका टेस्ट पास करने की चुनौती है!
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