इस आर्टिकल की पहली क़िस्त में पाकिस्तानी हिन्दू डॉक्टर्स के भारत आगमन, नागरिकता की प्रोसेस और काम मिलने की कहानी का जिक्र है. दूसरी क़िस्त में उनकी मूल समस्या क्या है उसका लेखाजोखा है. यहाँ प्रस्तुत है इसकी तीसरी क़िस्त…
डॉक्टरी का पेशा बदलकर ओड-जॉब्स करने को मजबूर हैं!
भारतीय नागरिकता मिलने के बाद एक बार फिरसे पाकिस्तान से आये हिन्दू-डॉक्टर्स को अपनी डिग्रियां वेरिफाइड करवानी होती है. इसके लिए उन्हें दोबारा पाकिस्तान जाकर उसी यूनिवर्सिटी से सही-सिक्के लगवा कर, भारत सरकार की ओर से भी वेरिफिकेशन की प्रोसेस पूरी करनी होती हैं. इस पूरी प्रक्रिया में करीब 1 महीने की दौड़-धाम और 1 लाख रुपयों तक का खर्चा, इन पर अलग मार है.

कुछ डॉक्टर्स इस प्रक्रिया से परेशान होकर डॉक्टरी का पेशा ही छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं.
38 वर्षीय डॉ. दशरथ केला कराची यूनिवर्सिटी से MBBS हैं और 2006 में अपने परिवार की सेफ्टी की खातिर अहमदाबाद आये थे. एक समय इस पूरी व्यवस्था से परेशान होकर उन्होंने 15000 की सैलरी पर जूतों की दुकान में नौकरी करना शुरू कर दिया था. उनका कहना है “पाकिस्तान में हिंदू परिवारों की बेटियों का अपहरण, जबरन धर्मपरिवर्तन और वसूली जैसी घटनाओं से परेशान होकर हम भारत आये थे लेकिन अब यहाँ क्या करे समझ नहीं आ रहा! एक MBBS डिग्री धारक लारी तो नहीं चलाएगा लेकिन फिर भी हम कर रहे हैं छोटा-मोटा जो काम मिले.”
46 साल के जयराम लोहाना सिंध में एक लाख रुपये महीना तक कमा लेते थे. 2012 में वह अहमदाबाद आ गए. अब अपने रिश्तेदार की मोबाइल की दुकान पर काम करते हैं. उनका कहना है, “पाकिस्तान में लोग हमें भगवान की तरह समझते थे लेकिन भारत में यहां जिंदा रहने के लिए हमें भगवान से नौकरी की भीख मांगनी पड़ती है.” उन्होंने ग्रामीण इलाके में अपनी सेवायें देने के लिए गुजरात सरकार को आवेदन किया था और उनकी ऐप्लिकेशन को सरकार ने MCI तक भी पहुँचाया था लेकिन MCI ने इस आधार पर उनका आवेदन खारिज कर दिया कि लोहाना भारतीय नागरिक नहीं हैं.
अंतिम जानकारी तक अकेले गुजरात में ही ऐसे करीब 200 डॉक्टर्स हैं जिनके पास भारत में डॉक्टर्स की शॉर्टेज कम करने का हुनर तो है, लेकिन नियमों ने हाथ बांध रखे हैं.
कुछ तो परेशान होकर वापस चले गए
पाकिस्तान के हिन्दु प्रवासी डॉक्टर्स का कहना है कि
पाकिस्तान में सबसे बड़ी समस्या है कि मुस्लिम चरमपंथी कभी भी हमारी बहु-बेटियों को उठा लेते हैं और उनका धर्मपरिवर्तन कर देते हैं. दूसरा यदि हमारी जान पहचान अच्छी है तो हम वहां काम कर सकते हैं वार्ना हर महीने हप्ते दिए बगैर तो एक दिन भी वहां निकलना मुश्किल है. हमारे मंदिरों में कोई भी माँस फेंक के चला जाये या मूर्तियां तोड़कर, हम कुछ कर नहीं सकते! और तो और आस पड़ोस में बच्चो के झगड़ो में भी ईशनिंदा के कानून का डर सताता रहता है.
इन सभी कारणों से ही डॉ. सुरेश खत्री भी 2010 में भारत आये थे लेकिन मौजूदा व्यवस्था की मार ने उन्हें दोबारा पाकिस्तान लौटने को मजबूर कर दिया. 2016 में पाकिस्तान वापस चले गए.
अब आप सोचिये की भारत में ही किसी गांव से निकला एक व्यक्ति जब शहर कमाने आता है तो यदि कुछ कमाए बगैर वापस गांव चला जाये तो गांव में उसका किस तरह मजाक उड़ाया जाता है. यहाँ तो वो धार्मिक समस्या भी नहीं है. तो फिर डॉ. सुरेश खत्री पर आज क्या बीत रही होगी हम कल्पना भी नहीं कर सकते!
भारत की व्यवस्था से परेशान होकर पाकिस्तानी डॉक्टर्स अब दुबई जैसे देशों की तरफ रुख कर रहे हैं. डॉ. नरेश अंदानी और डॉ. विक्रम गोमानी 2012 में भारत आये थे लेकिन 2015 में दुबई चले गए.
भारत सरकार का रुख क्या है इसपर?
पाकिस्तान से आये हिन्दु डॉक्टरों के मुताबिक मौजूदा भारत सरकार का रुख बहुत ही सकारात्मक है लेकिन नौकरशाहों का रवैया परेशान करने वाला है. मोदी सरकार ने पाकिस्तानी-बांग्लादेशी-अफ़ग़ानिस्तानी और दूसरे देशो के पीड़ित हिन्दुओं को शरण देने के मसले पर बहुत ही सकारात्मक कदम उठाये हैं लेकिन एक उपवाद के तौर पर यह मसला अटक गया है.
सरकार के सकारात्मक रुख के बावजूद नौकरशाह इस मसले पर टालमटोल कर रहे हैं. जैसे स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी कहते हैं इसमें क़ानूनी अड़चन है, क़ानून मंत्रालय कहता है इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय हाँ करे तो हमें कोई दिक्कत नहीं, फिर स्वास्थ्य मंत्रालय बोलता है इसमें MCI (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) ही कुछ कर सकता है और MCI कहता है हम तो स्वास्थ्य मंत्रालय से बाध्य हैं.
वैसे देखा जाये तो क्योंकि एक तरफ वे डॉक्टर्स हैं जो भारतीय नागरिक होते हुए अपनी इच्छा से विदेश में पढ़ने गए और दूसरे जो भारत के नागरिक नहीं थे लेकिन प्रताड़नाओं के कारण उन्हें अपना देश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी तो दोनों ही स्थितियां पूरी तरह से अलग हैं इसलिए दोनों को एक ही श्रेणी में रखना ये व्यवस्था का एक बहुत बड़ा बग है. जो साफ समझा जा रहा है.
इस पूरी स्थिति को समझाने के लिए पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टरों के नुमाइंदे अनगिनत बार स्थानीय सरकारों के सामने अपनी बात रख चुके हैं और दिल्ली की यात्रायें तो लगातार जारी हैं.
स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, एल के आडवाणी, जैसे बड़े नेताओं से पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टरों का डेलीगेट बात कर चूका है लेकिन बात अभी तक वहीं ही अटकी हुई है.

अब बस मोदीजी और अमित शाह से मिलना बाकि रह गया है.
मीडिया में क्यों नहीं उठाई बात!
पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टरों से जब मैं मिलने गया तो उनका कहना था कि “देश का मीडिया अब निकम्मा हो चूका है. TRP की हौड़ में तैमूर की टट्टी ज्यादा मूलयवान है बजाय इसके कि कीसी प्रशासनिक मसले को उठाया जाए. हम अपने मसले को लेकर बहुत से पत्रकारों के पास गए लेकिन अभी तक किसी ने कोई खास सूद नहीं ली. ऐसा नहीं है कि मीडिया के पास ताकत नहीं है. पीछले कुछ दिनों पहले एक सिक्ख जब भीख मांग रहा था तो उसकी कहानी को मीडिया ने उठाया और बाद में देश विदेश से सिक्ख समुदाय उस गरीब सिक्ख की मदद के लिए आगे आये लेकिन हमारा इतना बड़ा मुद्दा होते हुए भी लोगो को पता तक नहीं होना बताता है कि मीडिया ने अपनी सार्थकता खो दी है.”
साथ ही उन्होंने इश्यू बेस्ड जर्नलिज्म के तहत काम करने वाले हमारे पोर्टल्स जनसत्याग्रह.कॉम और द-आर्टिकल.कॉम की तहे दिल से प्रशंशा की. उनके मुताबिक “बाकि मीडिया वालों तक तो हम खुद जाते हैं फिर भी वे हमसे ठीक से बात करना तक गवारा नहीं समझते ऐसे में द-आर्टिकल.कॉम का पत्रकार खुद हमतक आता है और घंटों बैठ कर हमारे मसले को समझता है यह अपने आप में हमें विश्वास दिलाता है कि मीडिया में भी यही कुछ लोग हैं जो सही काम कर रहे हैं.”
पाकिस्तान से आये हिन्दू डॉक्टर्स मांग क्या है?
इनका कहना है जिस हिन्दू का ज़मीर जिन्दा है उसके लिए पाकिस्तान में रहना नामुमकिन है और इसीलिए हम भारत आए. कहीं रहने के लिए हमें यदि बीवी-बेटियों, पैसो और दूसरी चीज़ों की क़ुरबानी देनी पड़े तो कोई भी वहां एक दिन भी रहना नहीं चाहेगा लेकिन जैसे तैसे हमने वहां इतना समय निकला लेकिन दिन ब दिन हालत बिगड़ते जा रहे हैं इस वजह से हम “हिन्दुओं के नेचुरल प्लेस” भारत में आएं हैं.
इन डॉक्टर्स के मुताबिक “भारत में वैसे ही अनुभवी डॉक्टर्स की किल्लत है. खासकर रिमोट एरियाज में. ऐसे में…
1#
वे हिन्दू-डॉक्टर्स जो यहाँ 2002 के बाद पाकिस्तान से आकर बसे हुए हैं, जिन्हे भारत की नागरिकता मिल चुकी हैं उन्हें प्रैक्टिस करने की अनुमति दी जाये.
2#
इस समय पाकिस्तान में डॉक्टरी की पढाई कर रहे हिन्दू-डॉक्टर्स जिनको एक न एक दिन भारत आना ही हैं उनके लिए पढाई के बाद तुरंत बाद FMGE जैसी एग्जाम देने का प्रावधान किया जाये.
3#
साथ ही पाकिस्तान में रह रहे वे हिन्दू-डॉक्टर्स जो बहुत पहले MBBS पढ़ चुके है और अब भारत का रुख कर रहे हैं उन्हें LTV के दौरान FMGE जैसी एग्जाम पास करने का मौका दिया जाये, ताकि नागरिकता मिलने के बाद इन परेशानियों से किसी को गुज़रना न पड़े.
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