यूँ तो यह अपराध सारी राजनैतिक पार्टियों का है लेकिन जिनकी भूमिका गंगा अथॉरिटी और गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने के नारे को बुलंद करने में रही, उनका दायित्व दूसरों से ज्यादा है.
दो सवालों से बात शुरू करते हैं. यह कैसा देश हो गया है? यहां कैसा शासन चल रहा है? इसे यूं समझिए कि वोट बटोरने के लिए गाय, गंगा, गीता फिर घूम—फिरकर एससी/एसटी एक्ट और तीन तलाक समेत विभिन्न मुद्दों पर कितना खेल हो रहा है. बात करते हैं गंगा की. मोटे तौर पर सबको पता है कि गंगा के लिए अलग से मंत्रालय बनाया गया है. ढेरों योजनाएं गढ़ी गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन पर गंगा की फेरी लगा आते हैं. मां गंगा के बुलावे पर काशी जाकर चुनाव लड़ लेते हैं और देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं. यह एक दृश्य है, जो सुहावना है.
आइए, अब गंगा के नाम पर बने रंगमंच पर चल रहे नाटक का दूसरा नजारा देखते हैं. कानपुर स्थित आइआइटी में सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग में एक प्रोफेसर थे गुरुदास अग्रवाल. प्रो. अग्रवाल राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के सदस्य रहे. राष्ट्रीय प्रदूषण बोर्ड के पहले सदस्य सचिव बने. इसके अलावा सरकार के नदियों की साफ-सफाई से जुड़े मुद्दों के सलाहकार रहे. 79 बरस की उम्र में गंगा दशहरा के दिन अग्रवाल ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से जोशी मठ में संन्यास की दीक्षा ली. अब वे गुरुदास अग्रवाल नहीं रहे बल्कि स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद हो गए. साधु बन गए.
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को लगा कि देश और समाज के लिए कुछ करना चाहिए, जिससे साधु वेष में होने का कोई लाभ हो. वे जानते थे कि साधु की परिभाषा ही यह है, जो दूसरे के काम को सिद्ध करने में अपनी शक्ति लगा दे. इस नाते उन्होंने एक बीड़ा उठा लिया, जिसका संबंध भारत की सनातन धारा से है. यह शाश्वत धारा गंगा है. गंगा का मतलब गंगोत्री से निकल कर गंगासागर तक बहने वाली नदी तो है ही साथ में एक परंपरा भी है, जिसका नाता सृष्टि की शुरूआत से लेकर आज की पीढ़ी तक है. गंगा के किनारे कभी केवट ने श्रीराम के चरण पखारे थे. गंगा के किनारे भारत ही नहीं बसा बल्कि अनेक परंपराएं बनी. इसी गंगा की निर्मलता और स्वच्छता के लिए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने काम शुरू किया. 2009 में टिहरी बांध को भरने के लिए भागीरथी को रोकने पर प्रो. अग्रवाल ने अपना पहला अनशन शुरू किया. यह अनशन सफल रहा. यूपीए सरकार ने उनकी बात मान ली, जिससे उन्होंने अनशन तोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने गंगा की शुद्धता और पवित्रता के लिए दो अनशन और किए, जो सफल रहे. ये अनशन वे अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी को निभाने के लिए कर रहे थे क्योंकि स्वामी सानंद गंगा महासभा के संरक्षक थे, जिसकी स्थापना पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1905 में की थी.
स्वामी सानंद को लग रहा था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा ‘अच्छे दिनों’ में स्वच्छ और निर्मल होगी. इस नाते सानंद ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस मुद्दे की ओर खींचने के लिए उन्हें पत्र लिखना शुरू किया. पहला पत्र उन्होंने उत्तरकाशी से 24 फरवरी 2018 को लिखा, जिसमें वे गंगा की बिगड़ती स्थिति के साथ प्रधानमंत्री को 2014 में किए उनके उस वादे को याद करवाते हैं, जब बनारस में गंगा किनारे मोदी ने कहा था कि ‘मैं यहां नहीं आया हूं, मुझे मां गंगा ने बुलाया है.’
दूसरा पत्र उन्होंने हरिद्वार से 13 जून 2018 को लिखा. स्वामी सानंद ने नरेंद्र मोदी को याद दिलाया कि उनके पिछले खत का कोई जवाब उन्हें नहीं मिला है. इस नए पत्र में उन्होंने गंगा सफाई की मांगों को दोहराया और उन्हें जल्द क्रियान्वित करने की गुजारिश की. इस पत्र का भी कोई जवाब नहीं आया. इस बीच सानंद ने गंगा के स्वाभाविक प्रवाह को बनाए रखने, प्रदूषण रोकने, अतिक्रमण हटाने और विशेष कानून बनाने की मांग को लेकर 22 जून 2018 से अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया. इस दौरान उनकी मुलाकात केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती से हुई, जिनसे मिलकर उन्हें भ्रम हो गया कि उमा भारती साध्वी हैं, इस नाते वे झूठ नहीं बोलेगी. उमा भारती ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से फोन पर बात की. सानंद को दिलासा मिला. पर यह सच्चा साबित नहीं हो सका, जिससे उनके अनशन का कोई समाधान नहीं निकला. आखिर सानंद ने एक बार फिर 5 अगस्त 2018 को नरेंद्र मोदी को तीसरा पत्र लिखा.
स्वामी सानंद स्वरूप ने हरिद्वार में जो अनशन शुरू किया था, उसमें वे पानी और शहद का सेवन कर रहे थे. बीते हफ्ते उन्होंने पानी और शहद ग्रहण करना बंद कर दिया. इसके बाद देश के लिए शर्म से गड़ जाने का दिन आया, जब एक साधु ने माता गंगा के लिए अनशन करते हुए दम तोड़ दिया. गंगा की साफ-सफाई के मुद्दे पर 86 साल के स्वामी सानंद का 11 अक्टूबर को निधन हो गया. वह भी तब जब हिंदूवाद का रात—दिन बखान करने वाली भाजपा की सरकार दिल्ली और देहरादून में सत्ता पर काबिज है.
जरा सोचिए, स्वामी सानंद 112 दिनों तक अनशन पर बैठे. बीते 9 अक्टूबर से उन्होंने पानी पीना बंद कर दिया. सानंद ने नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि वे आमरण अनशन पर बैठे हैं और गंगा को अविरल बनाने के लिए जब तक हल नहीं निकाला जाता है, तब तक वे अपना अनशन जारी रखेंगे.
मैंने प्रधानमंत्री और जलसंसाधन मंत्री को अनेक पत्र लिखे, लेकिन किसी ने जवाब देने की जहमत नहीं उठाई. मैं पिछले 109 दिनों से अनशन पर बैठा हूं.अब मैंने निर्णय लिया है कि इस तपस्या को आगे ले जाऊं. जीवन को गंगा नदी के लिए बलिदान कर दूंगा.अब मेरी मौत के साथ ही मेरे अनशन का अंत होगा.
– स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने गंगा को अविरल बनाने के लिए निरंतर प्रयास किया. उनकी मांग थी कि गंगा के आस-पास बन रहे हाइड्रॉइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को बंद किया जाए और गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम को लागू किया जाए. मुख्य रूप से उनकी चार मांगे थीं. पहली, गंगा-महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर तुरन्त संसद द्वारा चर्चा कराकर पास कराया जाए. इस ड्राफ्ट के प्रस्तावकों में स्वामी सानंद खुद भी थे. यदि ऐसा न हो सके तो इस ड्राफ्ट के अध्याय–1 (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरंत लागू और प्रभावी बनाया जाए. दूसरी मांग , अलकनन्दा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर तथा मंदाकिनी पर प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना निरस्त की जाए. गंगा की सहायक नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं को निरस्त किया जाए. हरिद्वार में खदान पर पूर्ण रोक लागू हो, यह तीसरी मांग थी. चौथी मांग ‘गंगा भक्त परिषद‘ का गठन है.
अप्रेल, 2016 को स्वामी सानन्द ने गंगा संकल्प संवाद में कहा था कि नेता नहर की पैरवी करते हैं पर गंगा को बर्बाद करने पर तुले हैं. नहर वोट देती है, गंगा नहीं. अब गंगा से हिंदू वोट नहीं मिलता. नहर पर वोट मिलता है. नेताओं को पता है कि नहरों के कारण गांव, गंगा से पानी निकासी का विरोध नहीं करेंगे. वहीं शहर, बिजली के लालच में होते हैं. इसीलिए वे गंगा से नही जुड़ते. विकास का मतलब सुविधा है. लोग सुविधाओं के लिए वोट देते हैं, पर्यावरण के लिये नहीं. नहर सुविधा है, गंगा पर्यावरण!
सानंद ने एकबार साक्षात्कार में कहा था कि शोर मचाने से बेहतर काम करना है. आखिर विश्व हिंदू परिषद ने गंगा के लिये क्या किया? सानंद ने 13 जून, 2018 को अनशन करने की घोषणा की थी. बाबा रामदेव ने तुरंत ‘गंगा रक्षा मंच’ स्थापित किया, जिसकी पहली बैठक 16 जून को रखी गई. इस मीटिंग से ठीक पहले विश्व हिन्दू परिषद के सचिव राजेन्द्र पंकज सानंद के पास पहुंचे. उन्होंने कहा कि अनशन शुरू करने की बजाय सानंद बैठक में शामिल हों. उन्हें यह भी बताया गया कि गोविंदाचार्य इस मंच का संयोजन करेंगे. पर सानंद को पता चला कि गोविंदाचार्य ने संयोजन करने से मना कर दिया. इससे प्रश्न उठा कि विश्व हिंदू परिषद के जो सचिव गंगा के नाम पर सानंद के घर आए थे, अब वे सानंद की मौत के बाद क्या कर और कह रहे हैं?
साफ है कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने वालों ने अपना दायित्व कितना निभाया है. यूँ तो यह अपराध सारी राजनैतिक पार्टियों का है लेकिन जिनकी भूमिका गंगा अथॉरिटी और गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने के नारे को बुलंद करने में रही, उनका दायित्व दूसरों से ज्यादा है. सवाल है कि उन्होंने अपना दायित्व कितना निभाया? हिंदू संस्कृति के नाम की रोटी खाने वालों ने गंगा के साथ क्या किया? साथ ही, बड़े—बड़े बैनर और पोस्टर लगाकर अपना प्रचार करने वाले कथावाचकों ने गंगा का साथ कितना दिया? उसे बुरे हाल पर छोड़कर पांडालों में उसके जयकारे लगाने वाले ये लोग कौन हैं? याद कीजिए, 2006 में बाबा रामदेव ने एक सभा बुलाई थी. उसमें मुरारी बापू भी थे. उन्होंने मंच से कहा था, ‘वे सिर्फ गंगाजल पीते हैं. गंगाजल में सने आटे की रोटी बनाकर खाते हैं.’ श्रीश्रीरविशंकर ने भी गंगा संरक्षण को लेकर ऐसी ही श्रद्धा जताई थी. सानंद का कहना था कि ये लोग हिंदू संस्कृति के नाम से रोटी खाते हैं, पर इनसे पूछना चाहिए कि इन्होंने हिंदू संस्कृति और उसके प्रतीक चिह्नों को बचाने के लिये क्या किया? गंगा, गीता और संस्कृत पर इनका क्या और कितना उपकार है? जाहिर है कि यह स्वामी सानन्द नहीं, बल्कि सरकार और स्वयंभू धर्माचार्यों के साथ हुए उनके कटु अनुभव बोल रहे थे.
उमा भारती के सरकारी आश्वासन महज कोरे थे –
परसों मेरे एवं आदरणीय बाबा @yogrishiramdev जी के बीच में जो खुला संवाद हुआ उनमें से कुछ तथ्यों की पुनरावृत्ति जरूरी है। pic.twitter.com/iJ97by7tqV
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
बाबा से पहले गायत्री परिवार के श्री प्रणव पांड्या जी तथा सानंद स्वामी जी (श्री जी डी अग्रवाल) ने भी गंगा के कार्य के विषय में अपनी चिंता व्यक्त की है। श्री सानंद स्वामी जी तो अनशन पर ही बैठ चुके हैं। मैंने उनसे भी अनशन तोड़ने का अनुरोध किया है। pic.twitter.com/VddgSlGLEz
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
मेरा अनुरोध है कि मेरे ट्वीटों को बिना पूरा पढ़े और बिना पूरा दिखाए यदि टिप्पणी हुई तो गंगा योजना को हानि हो सकती है। इसलिए मेरा अनुरोध है, समग्रता से पढ़ें, समग्रता से दिखाएं एवं समग्रता से ही अपनी प्रतिक्रया दें।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
प्रधानमंत्री @narendramodi जी की गंगा पर आस्था सर्वविदित है, इसलिए उन्होंने गंगा मंत्रालय बनाया था, जो तीन साल मेरे पास रहा तथा अब एक साल से श्रीमान @nitin_gadkari जी के पास है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
1985 से सरकारी तंत्र के जरिए गंगा निर्मलता का कार्यक्रम शुरू हुआ। 2014 में जब @cleanganganmcg बना तो हमने पुराने कार्यक्रम की समीक्षा की तथा गंगा मिशन जो कि एक सोसाइटी थी उसको नई धारणा – नई गति प्रदान की। मोदी जी ने गंगा जी के लिए 20,000 करोड़ की सेंट्रल सेक्टर फंडिंग की।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
फिर हमें 2 साल इसकी योजना बनाने में लगे। पुरानी योजनाओं को भी हमने जारी रखा। पहले नई योजना पर गहन विचार-मंथन हुआ जिसमें केंद्र सरकार के 7 विभाग तथा 5 राज्यों की सरकारों के साथ परामर्श के कई दौर हुए।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
फिर योजना की EFC (वित्तीय अवधारणा) हुई तथा हमारी EFC पर 20,000 करोड़ की फंडिंग पर कैबिनेट का समर्थन हुआ।
2015 मई के कैबिनेट अप्रूवल तक उद्योग, पंचायती तंत्र, संत समाज, पर्यावरण विद्, वैज्ञानिक सबसे परामर्श हो चुका था।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
इन डेढ़ सालों में मेरी हर सांस में गंगा थी। सुबह सात बजे से रात को ग्यारह बजे तक – मैं, मेरे नीजि सचिव तथा मेरे मंत्रालय एवं मिशन गंगा के सभी अधिकारी गंगामय हो चुके थे। अविरलता, निर्मलता, जीव-जंतु, पेड़-पौधे तथा आजीविका – यह सब कार्ययोजना के अंग थे।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
फिर क्रियान्वयन का दौर शुरू हुआ। हमें जो राज्य सरकारों से एवं ब्यूरोक्रेसी से अपेक्षाएं थी उसमें हमें तालमेल बनाने में भीषण कठिनाई हुई। मैं किसी एक राज्य या तथा केंद्र सरकार के किसी एक विभाग को दोषी नहीं ठहराउंगी, मुझे तो सभी शिकंजे में जकड़े हुए लगते थे।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
फिर भी जैसे-तैसे 2016 जुलाई में श्री @nitin_gadkari जी के साथ हमने इस योजना के लगभग सभी कार्यक्रमों का प्रारंभ कर ही दिया जिसमें केंद्र सरकार के कई मंत्री तथा 5 राज्यों के मुख्यमंत्री एवं कई मंत्री भी शामिल हुए। अखबारों में और टीवी पर इसकी खूब चर्चा हुई, यह आप याद कर लीजिए।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
फिर, इस कार्यक्रम को और शक्तिशाली एवं गतिशील बनाने के लिए गंगा सोसाइटी की जगह अथॉरिटी बनाने का फैसला हुआ। अथॉरिटी के पूरे गठन में 10 महीने लग गए। हमारा कार्यक्रम थम सा गया। इसी बीच में उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में विधान सभा के चुनाव हुए। तीन महीने की लंबी अचार संहिता लगी।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
लगभग 10 महीने के बाद हमारे कार्यक्रम में जैसे फिर से गति वापस आई जो आजतक चल रही है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
मेरा विभाग बदल चुका है, किंतु गंगा के साथ मेरी संलग्नता जरा भी कम नहीं हुई है। मेरे मंत्रालय में भी गंगा की स्वच्छता का हिस्सा है। @MinofDWS
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
जो चीज शुरू नहीं हो पाई, उसी कि चिंता बाबा @yogrishiramdev जी तथा अन्य महापुरूषों ने की है। उनकी चिंता आधारहीन नहीं है, क्योंकि गंगा जी संतों एवं समाज की तपस्या से जन्मी एवं पनपी हुई जलधारा है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
जहां मैं गंगा लिख रही हूं वहां यमुना, अलकनंदा एवं मंदाकिनी को भी शामिल मान लीजिए। गंगा के कैबिनेट नोट में ऐसा ही प्रावधान पारित करवाया गया है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
गंगा एक्ट की कमिटी के अध्यक्ष पूर्व जस्टिस गिरधर मालवीय जी, एक्ट का मसौदा पिछले साल ही मंत्रालय में विचार-विमर्श के लिए सब्मिट कर चुके हैं। जिसपर @mowrrdgr मंत्रालय में विमर्श चल ही रहा है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
मंत्री बनने से पहले के मेरे गंगा अभियान के तीन साल तथा मंत्री बनने के बाद के मेरे तीन साल में सभी राजनैतिक दलों से एवं विश्व बिरादरी से मेरा संपर्क हुआ। उसके आधार पर मैं कह सकती हूं कि गंगा एक्ट पारित करने में हमें कोई कठिनाई नहीं आएगी। सारा संसार गंगा को मानता है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
संसद में गंगा एक्ट के निर्विरोध पारित होने की स्थिति भी बन सकती है।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
आदरणीय @yogrishiramdev जी, आदरणीय @ppandya2011 जी, श्री सानंद स्वामी जी, @SriSri रविशंकर जी, आदरणीय @SadhguruJV जी, सभी पूजनीय शंकराचार्य, सभी पूज्य अखाड़ो एवं मठों के महंत, गंगा किनारे के सभी धर्मों के स्थानों के प्रमुख-सबसे मेरा अनुरोध है कि आप अक्टूबर तक धैर्य का वरदान दीजिए।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
आदरणीय @nitin_gadkari जी से परामर्श कर के हमारे स्वच्छता मंत्रालय @MinofDWS @swachhbharat ने पहले ही घोषित कर दिया है कि अक्टूबर के महीने में सभी की अनुकूलता देखकर एक तारीख तय करेगा तथा गंगा की महा-कारसेवा के साथ गंगा की स्वच्छता के महाभियान का शुभारंभ होगा।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
सभी संतगण इसकी अगवाई करें। मुझे विश्वास है कि मां गंगा को दिया वचन हम पूरा कर सकेंगे।
— Uma Bharti (@umasribharti) July 3, 2018
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने दूसरे लोक का रास्ता पकड़ लिया है. जहां से वे लौट कर नहीं आएंगे. पर इतना तय है कि उनके उठाए मुद्दे जीवित रहेंगे. गंगा नहीं बची तो पुरखों का मोक्ष कैसे करेंगे? भारत के उस अमर इतिहास का क्या होगा, जिसमें खुद को भारतवासी बताने के लिए कहा जाता है कि हम गंगा के देश के निवासी हैं. क्या ये चमचमाते कैमरों के सामने बयान देने वाले दोहरे चेहरे समझ पाएंगे कि गंगा वोट के लिए नहीं बल्कि देश के लिए जरूरी है. गंगा चुनाव जीतने का साधन नहीं है बल्कि वह गरीब और वंचित तबके का पेट भरने का सबसे बड़ा संसाधन है. सानंद गंगा के बचे रहने तक याद किए जाते रहेंगे.
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