जिस पुरातन विरासत से भारत का मस्तक गर्व से ऊंचा होता है, गीता उनमें एक है। गीता महाभारत का हिस्सा है, जिसका इतिहास पांच हजार साल से भी अधिक पुराना है। जो दो ग्रंथ प्राचीन भारत के इतिहास कहे जाते हैं, उनमें रामायण और महाभारत का नाम है। रामायण और महाभारत सिर्फ ऐतिहासिक दस्तावेज ही नहीं है, बल्कि धर्मग्रंथ भी हैं। ये दोनों ग्रंथ केवल इतिहास ही नहीं बताते बल्कि ये हमारी आत्मा का भी ज्ञान कराते हैं। त्रेता और द्वापर में क्या हुआ, ये सिर्फ यह ही नहीं बताते बल्कि प्रत्येक मनुष्य की देह के भीतर क्या चल रहा है, इसकी भी एक तस्वीर खींचते हैं। इन दोनों में देव भाव के प्रतिनिधि श्रीराम और असुर भाव के नायक रावण के बीच हर रोज चलने वाली लड़ाई का लेखा—जोखा है। इसी धारा में कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ संवाद गीता भी है। गीता की शुरूआत पुत्रमोह में पड़े सर्वात्मना अंध धृतराष्ट्र ने की है। इसमें सारे उपनिषदों का समावेश है। गीता शब्द का मतलब है, प्रेमपूर्वक बोला गया। इस प्रकार गीता का सीधा अर्थ है—श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया हुआ आत्म बोध।
एक सवाल बार—बार उठाया जाता है कि गीता क्यों पढ़नी चाहिए? इसका जवाब ‘हां’ और ‘ना’ में नहीं हो सकता। गीता इसलिए पढ़नी चाहिए क्योंकि हमारी देह में अंतर्यामी कृष्ण विराजमान हैं और हम आपातकाल में उनसे सवाल—जवाब पूछ सकते हैं। पूछने और समझने की यह प्रक्रिया ही गीता कहलाती है। हम भले सोए हैं पर वह अंतर्यामी परमात्मा सदा जागृत हैं। वह भीतर बैठकर देखता है कि हममें कब जिज्ञासा उत्पन्न हो? पर हमें सवाल ही पूछना नहीं आता। सवाल पूछने की मन में भी नहीं उठती। इस कारण हमें गीता-सरीखी पुस्तक का नित्य ध्यान करना चाहिए। हम सवाल पूछना सीखना चाहते हैं या जब-जब मुसीबत में पड़ते हैं तब-तब अपनी मुसीबत दूर करने के लिए गीता की शरण में जाते हैं और उससे आश्वासन लेते हैं, इसी दृष्टि से भी गीता पढ़नी चाहिए।
गीता सद्गुरुरूप हैं। वह मातृरूप है। हमें विश्वास रखना चाहिए कि उसकी गोद में सिर रखकर हम सही-सलामत पार हो जाएंगे। गीता के द्वारा अपनी सारी धार्मिक गुत्थियां सुलझा लेंगे। इस भांति गीता का नित्य मनन करनेवालों को उसमें से नित्य नए अर्थ मिलते हैं। धर्म और समाज की ऐसी एक भी उलझन नहीं है, जिसे गीता न सुलझा सकती हो। हमारी अल्पश्रद्धा के कारण हमें उसका पढ़ना-समझना न आए तो दूसरी बात है, पर हमें अपनी श्रद्धा नित्य बढ़ाए जाने और स्वयं को सावधान रखने के लिए गीता का पारायण करते रहना चाहिए।
मानव जीवन ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्वय है। गीता इनसे संबंधित सभी समस्याओं का समाधान है। गीता का अध्ययन जीवन के गूढ़ रहस्य को उजागर करता है। महात्मा गांधी ने गीता को शास्त्रों का दोहन माना। उन्होंने अपनी रचना ‘गीता माता’ में श्लोकों के शब्दों को सरल अर्थ देते हुए उनकी टीका की है। गांधी का विश्वास था कि जो मनुष्य गीता का भक्त होता है, उसे कभी निराशा नहीं घेरती, वह हमेशा आनंद में रहता है।’
‘गीता-माता’ में महात्मा गांधी ने लिखा, ‘गीता शास्त्रों का दोहन है। मैंने कहीं पढ़ा था कि सारे उपनिषदों का निचोड़ उसके सात सौ श्लोकों में आ जाता है। इसलिए मैंने निश्चय किया कि कुछ न हो सके तो भी गीता का ज्ञान प्राप्त कर लें। आज गीता मेरे लिए केवल बाइबिल नहीं है, केवल कुरान नहीं है, मेरे लिए वह माता हो गई है। मुझे जन्म देने वाली माता तो चली गई, पर संकट के समय गीता-माता के पास जाना मैं सीख गया हूं। मैंने देखा है, जो कोई इस माता की शरण जाता है, उसे वह ज्ञानामृत से तृप्त करती है।
गांधी आगे लिखते हैं, ‘कुछ लोग कहते हैं कि गीता तो महागूढ़-ग्रंथ है। स्वर्गीय लोकमान्य तिलक ने अनेक ग्रंथों का मनन करके पंडित की दृष्टि से उसका अभ्यास किया और उसके गूढ़ अर्थों को वे प्रकाश में लाए। उस पर ‘गीता—रहस्य’ की रचना भी की। तिलक महाराज के लिए यह गूढ़ ग्रंथ था पर हमारे जैसे साधारण मनुष्य के लिए यह गूढ़ नहीं है। सारी गीता का वाचन आपको कठिन मालूम हो तो भी आप केवल पहले तीन अध्याय पढ़ लें। गीता का सार इन तीनों अध्यायों में आ जाता है। बाकी के अध्यायों में वही बात अधिक विस्तार से और अनेक दृष्टियों से सिद्ध की गई है। यह भी किसी को कठिन मालूम हो तो इन तीन अध्यायों में से कुछ श्लोक छांटे जा सकते हैं, जिनमें गीता का निचोड़ आ जाता है। तीन जगहों पर तो गीता में यह आता है कि सब धर्मों को छोड़कर तू केवल मेरी शरण ले। इससे अधिक सरल—सादा उपदेश और क्या हो सकता है? जो मनुष्य गीता में से अपने लिए आश्वासन प्राप्त करना चाहे तो उसे उसमें से वह पूरा-पूरा मिल जाता है, जो मनुष्य गीता का भक्त होता है, उसके लिए निराशा की कोई जगह नहीं है, वह हमेशा आनंद में रहता है।’
गीता ऐसा अमर ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है। गीता का जन्म कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुआ था। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं, अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इस लघुकाय ग्रंथ में ज्ञान का उपदेश है, जो संपूर्ण मानव जाति को सचेत करता है। गीता सब तरह के संकटों से मानव को उबारने का साधन है।
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