भारत में चुनाव त्यौहार की तरह मनाएं जाते हैं. चुनाव प्रचार में आतिशबाजी, पुराने वादों की लोहड़ी जलाना, नेताओं का एक दूसरे पर आरोपों के रंग छिड़कना, पुराने नाते तोड़कर नए रक्षाबंधन और चुनाव ख़त्म होते ही नेता रूपी पतंगों का सटासट कटना. भला ऐसा माहौल कब होता है यार!

फ़िलहाल चुनावी-त्यौहार की इस रोशनी से मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम जगमगा रहे हैं. पार्टियां और नेतागण अपने-अपने तरीकों से छोटे-बड़े हर तरह के पटाखे फोड़ रहे हैं.

इस बीच, राजस्थान से हनुमान बेनीवाल ने भाजपा-कांग्रेस दोनों खेमों की रणनीतियों वाली पटाखा-फैक्ट्री में आग सी लगा दी है.

29 अक्टूबर 2018 की रोज़ जैसे ही नागौर से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल ने ‘बोतल’ के चिन्ह वाली ‘राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी’ का ऐलान किया, मानो राजस्थान में भाजपा-कांग्रेस के चुनावी समीकरणों में नए सिरे से फेरबदल की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

आज से पहले राजस्थान के चुनावों में बोतलों का बोलबाला तो था ही. अब हनुमान बेनीवाल की ‘बोतल’ कितना गुल खिला पाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा. बहरहाल, बात पक्की है कि राजनीति की ये पुरानी ‘बोतल’ सूबे को नशे में जरूर डूबा देगी. किसी पर ये नशा हल्का चढ़ेगा तो किसी पर गहरा लेकिन चढ़ेगा तो जरूर ही.

अभी तक माना जा रहा था कि मुख्य रूप से कांग्रेस और बीजेपी ही इस चुनाव में फ्रंट फुट पर खेलेंगी और कुछ हद तक बसपा, आम आदमी पार्टी, जमींदारा पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया भी अपने-अपने अस्तित्व के लिए जूझेंगी लेकिन ‘राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी’ की एंट्री ने मुकाबला रोचक बनाते हुए तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी तेज कर दी है.

इस सुगबुगाहट का एक और सबसे बड़ा कारण है कि हाल ही में भाजपा से अलग होकर ‘भारत वाहिनी पार्टी’ बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी भी अपनी पार्टी का गठबंधन बेनीवाल की पार्टी के साथ करने वाले हैं.

बेनीवाल भी 2008 में भाजपा के टिकट से ही लड़े थे और बसपा उम्मीदवार को उन्होंने करीब 24443 वोटों के अंतर से हराया था.

बेनीवाल और तिवाड़ी के एक साथ होने की ताकत को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि प्रदेश में अभी तक अपने वजूद के लिए जूझ रही छोटी-बड़ी पार्टियां अब एक होकर लड़ने की तैयारियाँ कर रही हैं. दोनों की छत्रछाया में सबको मौका मिल गया है अपने-अपने वजूद को साबित करने का. ‘एकता में ही शक्ति होती है’ इस सूक्ति को सिद्ध करने का.

आपको यहाँ बता दें कि मारवाड़ व शेखावाटी के जाट बेल्ट में हनुमान बेनीवाल की अच्छी खासी पकड़ है वहीं शेखावाटी व जयपुर की कुछ सीटों पर तिवाड़ी का सिक्का चलता है. यूपी से सटे इलाको में समाजवादी पार्टी काफी सक्रिय है साथ ही शेखावाटी के किसानों में माकपा का प्रभाव है. वागड़ बेल्ट में पहले से ही बसपा का प्रभाव साफ दिखता है वहीं श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ क्षेत्र में जमींदारा पार्टी का अपना वजूद है. राष्ट्रीय लोकदल भी अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की कवायत में ठीक-ठाक दिख रही है.

कुल मिलाकर बेनीवाल ने अपनी ‘बोतल’ के जरिये चुनावी कॉकटेल का चखना तैयार कर लिया है, बस अब देखना है कहाँ-कितना-क्या असर होता है!


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