मेरी प्यारी रूह अफजा,
आज मैं अपने आप से आँख भी नहीं मिला पा रहा लेकिन तुमसे माफ़ी माँगना चाहता हूँ कि इतने वर्षों तक टीआरपी और वेबसाइट हिट्स के एक तरफ़ा प्रेम में तुम अकेली तड़पती रही और मैंने तुम्हारा नाम तक जानने की जरुरत नहीं की.
मैंने इन्द्राणी, हनीप्रीत और अब तैमूर सबका ध्यान रखा है लेकिन तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम को समझ न सका! मैं तुम्हारा गुनेहगार हूँ, हो सके तो मुझे माफ़ करना!
लेकिन कहते है ना ख़ुदा के घर देर है अंधेर नहीं! इस साल रमज़ान के पाक महीने में मुझे तुम्हारे प्यार की इंतिहा ही हो गई.
मुझे इस बात की टीस है कि “तुम बाज़ार से कहीं चली गई हो” काश इस ख़बर को मैं ही ब्रेक करता लेकिन कोई बात नहीं! जो होता है अच्छे के लिए ही होता है! मैं शुक्रगुज़ार हूँ उन तेज़ तर्राट मीडिया माध्यमों का जिनके हवालों से मुझे तुम्हारे बारे में ख़बर मिली.
लोकसभा चुनावों की ख़बरों के बीच तुम्हारे बारे में लिखे गए उस लेख को पढ़कर मुझ पर क्या बीती होगी शायद ही तुम कभी समझ पाओगी! लेकिन आज जब मैं ये पत्र लिख रहा हूँ तो मेरा गला रुँधा हुआ है. ज़माना कितना ज़ालिम हो गया है कि रमज़ान के दिनो में जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरुरत है तो तुम बाज़ार से ग़ायब हो गई हो!
लोग कहते हैं कि मौजूदा सरकार मुसलमान-विरोधी है, मैंने कभी यकीं नहीं किया लेकिन अब मैं कहूँगा मुसलमानों के मामले में ये सरकार बहरी भी है क्योंकि जिस तरह मैंने और मेरे हमदर्द दोस्तों ने तुम्हारे ग़ायब होने की बात को रमज़ान से जोड़ा है, मैं उम्मीद कर रहा था कि मोदीजी अपने भाषणों में एक-दो बार तो तुम्हारा जिक्र करेंगे ही करेंगे लेकिन हाय-तौबा ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा.
विपक्ष तो निकम्मा है ही! राहुल गाँधी शिकंजी की बात करते हैं लेकिन तुम्हारे बारे में बात करने पर उन्हें भी साँप सूंघ गया लगता है. अब तुम्हारे अस्तित्व की लड़ाई लड़ना मेरे और मेरे कुछ मीडियाई दोस्तों की ज़िम्मेदारी बन के ही रह गई है.
मैं तो पढ़-पढ़ के हैरान हूँ कि इस बाज़ार में तुम्हारे चाहने वाले कितने हैं! क्या तुमने कभी सोचा है कि दूसरों के मुंह से तुम्हारे बारे में तरह-तरह की बातें सुनकर क्या बीत रही होगी मुझपर? खुदा, ये दिन किसी आशिक को न दिखाए!
मैं कल मेरे सर्किल के कुछ पत्रकारों से भी मिला. सभी को अपने आप पर घिन आ रही है कि इतने अरसे में तुम्हारा नाम तक नहीं जान पाए. इतने रमज़ान गए लेकिन तुम्हारे होने की कभी सुध तक नहीं ली गई.
अभी भी कुछ पत्रकार शरबत की दुकानों पर ‘ये वाला शरबत’ देना कहकर तुम्हारा नाम भूल रहे हैं, मैं कहता हूँ उन पत्रकारों के लिए तो शर्म से मर जाना ही बेहतर होगा! वे मेरे दोस्त कहलाने के कतई भी लायक नहीं है.
मैंने भी अपने जीवन में 19 के पहाड़े को याद करने के बाद सबसे अधिक कठिनाई इस रमज़ाम में ही अनुभव की है क्योंकि तुम बाज़ार से गायब हो गई हो! कहाँ चली गई हो? लौट आओ वार्ना तुम्हारा ये ‘प्रेमी पत्रकार’ तुम्हारे बारे में रिपोर्टिंग कर कर के पत्रकारिता की जान ले लेगा!
कल तक तुम मेरे प्यार में पागल थी, देर से ही सही लेकिन मैं भी तुम्हारे प्यार को स्वीकार चुका हूँ लेकिन घबराया हुआ हूँ कि क्या बहुत देर तो नहीं हो गई ना! तुम्हारे बारे में बात करने का जो हक़ सिर्फ मुझे होना चाहिए था, आज ज़माने के तमाम पत्रकार अपने-अपने हिसाब से तुम्हारे बारे में बात कर रहे हैं. क्या यही दिन दिखाने के लिए तुमने मुझसे इश्क किया था?
ख़ुदा भी कितना बेरहम है! तुम्हे इस रमज़ाम के दौरान ही मुझसे अलग कर दिया है. मुझे इस बात की हमेशा शिकायत रहेगी उस से.
वैसे मैं तुम्हे बता देना चाहता हूँ कि ज़ीरो टीआरपी वाले चैनल की एक वेबसाइट और उनके कुछ दोस्त तुम्हारे नाम पर झूठ का धंधा कर रहे हैं. मैंने उनकी वेबसाइटों पर पढ़ा कि तुम ऑनलाइन भी उपलब्ध नहीं हो! इतना पढ़ते ही मानो पैरों तले मेरी ज़मीन ख़िसक गई लेकिन शुक्र है मेरे हमदर्दों का जिन्होंने तुरंत ऑनलाइन सर्च किया और तुम्हे वहाँ उपलब्ध पाया. तुम बाजार में रहो ना रहो, ऑनलाइन तो रहना, प्लीज! वरना मैं जीते जी ही मर जाऊंगा!
जबसे मैंने मोदीजी के पक्ष में एक ट्वीट किया था ये ज़ीरो टीआरपी वाले चैनल और उनकी गैंग तो सच में मेरे पीछे ही पड़ गई है.
और ख़बरदार ‘ऑनर किलिंग’ जैसा कुछ भी तुमने अपने ख्याल में भी लाया तो! मुझे मेरे देश के संविधान पर पूरा भरोसा है. जिस तरह अफ़ज़ल के लिए रात को भी कोर्ट ने अपनी सेवाएं दी थी मुझे यकीं है कि अपने केस में भी कोई ना कोई रास्ता कोर्ट ही निकालेगा. आखिर अपना केस भी तो इतना दिलचस्प है!
जानता हूँ संकट की घडी है लेकिन तुम घबराना मत, हिम्मत रखना. ज़माना भले ही हमारे रिश्ते को ना समझे, मैं तुम्हे तन, मन और धन से अपना चुका हूँ! तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा. सातों जन्मो तक!
इस रमज़ान में हमारा मिलना होगा या नहीं, इस पर मैं असमंजस में हूँ लेकिन अगले रमज़ान से मैं तुम्हारा पूरा ध्यान रखूँगा. यदि सरकार बदल गई तो थोड़ा आसान रहेगा क्योंकि प्रधानमंत्री को बदलवाने के लिए हमारे विपक्षी नेता पाकिस्तान से मदद मांग सकते हैं तो फिर तुम्हारे लिए तो जान भी दे देंगे.
बहरहाल मैं तो यही चाहूंगा कि हो सके तो तुम खुद से वक्त की नजाकत को समझो, नाराज़गी छोड़ो और जहाँ भी हो वापस आ जाओ!
इसी रमज़ान से तुम्हे चाहने वाला
‘अभिषेक’ उर्फ़ ‘रूह अफजा’ का ‘पागल आशिक पत्रकार’(बड़े वाला)
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