कुछ वर्षो पूर्व मेरे एक परम मित्र लंदन हो आये. वापस आते ही लंदन की बड़ी-बड़ी गाने लगे. लंदन का मैडम तुसाद म्यूजियम, लंदन का ब्रिटिश म्यूजियम, लंदन का बकिंघॅम पैलस, टॉवर ऑफ़ लंदन, फलाना-फलाना. साथ ही बताने लगे कि भारतीय उप-महाद्वीप के लोग कहीं भी चले जायें, जहाँ रहेंगे उसको मिनी हिंदुस्तान बना देंगे. मैंने पूछा कैसे? कहने लगे “लंदन में एक जगह है साउथॉल!” हाँ, वही जिसको ‘नमस्ते लंदन’ में दिखाया गया है! बताने लगे “वहाँ मानो मिनी हिंदुस्तान ही बसा दिया है अपने लोगो ने. लंदन का सबसे बड़ा एशियाई बाज़ार है वहां. सभी जगह अपने ही लोग दीखते हैं वहाँ. मतलब लगता ही नहीं कि हम लंदन में हैं. और तो और अपने वालों ने वहां भी अपनी अपनी दुकानों को आगे खींच दिया है फुटपाथ तक.” मैंने पूछा “तो वहां की पुलिस एक्शन नहीं लेती क्या?” तो बोले “जब वहां गोरों से ज्यादा एशियाई हैं तो पुलिस भी फिर एशियाई देशों कि बन जाएगी ना!” हँसते हुए!

मेरे मित्र ने भले ही उस बात को हंसी में निकाल दिया लेकिन वास्तव में भारतीय उप-महाद्वीप के देशों के लिए हमारे ही मन में आम धारणा यही है कि दिल्ली हो, लाहौर हो या हो ढाका, हमारे यहाँ की दुकाने फुटपाथ तक फैली हुई होती हैं. पार्किंग की जगह ठेले चलते हैं. पार्किंग सड़क पर होती है. फिर सड़कें सुकड़ती जाती हैं और ट्रैफिक की समस्या बढ़ती रहती है.
जबसे मैंने होश सम्भाला है, अहमदाबाद की भी पिछले 15 वर्षों से यही छवि थी. हाँ भाई, मोदीजी के टाइम में भी. शहर की सड़कें वाहनों के लिए कम, अतिक्रमण के लिए ज्यादा उपयोगी साबित हो रही थी. शहर का शहरी, बढ़ती ट्रैफिक की समस्याओं के कारण दिन-ब-दिन परेशान हो रहा था.

लेकिन करीब 1 महीने पहले एक ऐसा चमत्कार हुआ कि आज अहमदाबाद की सड़कें एकदम से खुल गई. लोगों की गाड़ियां पार्किंग जोन्स में पार्क होने लगी, फुटपाथ चौड़े दिखने लग गए, ज्यादतार दुकानों का अतिक्रमण ख़त्म हो गया और कहीं बचा भी है तो जल्द हो जाएगा. इसका अहमदबादियों को विश्वास है.
तो अचानक ये विश्वास आया कैसे?
हुआ कुछ यूँ कि करीब एक महीने पहले गुजरात हाई कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर अनूप कुमार सिंह को शहर की ट्रैफिक की समस्या पर जमकर लताड़ा था. यही नहीं कोर्ट ने ट्रैफिक की समस्या को सुलझाने हेतु पुलिस की इच्छा शक्ति पर भी सवाल उठाये थे.
इसके बाद मानो शहर के पुलिस कमिश्नर अनूप कुमार सिंह और नए नवेले म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा ने शहर की इस समस्या का खत्म करने की सौगंध खा ली.
सबसे पहले कमिश्नर अनूप कुमार सिंह ने शहर के ट्रैफिक को भांपने के लिए ऑटो में सवारी की और भद्रकाली, लालदरवजा जैसे संकड़े विस्तारों का जायजा लिया. यहाँ से उन्हें अंदाज़ा आ गया कि क्या गड़बड़ है, कहाँ गड़बड़ है और गड़बड़ कितनी मात्रा में है!
फिर अहमदबाद पुलिस और अहमदबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन ने संयुक्त रूप से ‘अतिक्रमण हटाने’ की मुहीम छेड़ दी. जनता में एक पॉज़िटिव मैसेज जाए इस वजह से सबसे पहले उन विस्तारों को चुना गया जहाँ रसूखदार लोगों का वर्चस्व था. दुकानों के आगे के अवैध निर्माण और अवैध बिल्डिंग्स पर पहले नोटिस दी गई और फिर बुलडोज़र चला दिए गए. सड़कों पर अवैध पार्क की गई गाड़ियों को जप्त करना शुरू किया गया. गरीब हो या अमीर, नेता हो या बिज़नेसमेन, सिर्फ कानून से हमदर्दी रखी गई. कानून उल्लंघन पर, सरकारी गाड़ियों से भी दंड वसूलना शुरू कर दिया गया. यहाँ तक की 20-30 साल पुरानी अवैध होटलों को भी साफ कर दिया गया.
अहमदाबाद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि करीब 20 दिन में 5732 अवैध-निर्माणों पर बुलडोज़र चला दिए गए और ये एक्शन अभी भी शुरू है. कुछ ने तो पुलिस के डर से खुद ही हटा लिए हैं.

लोगों की मजबूरी को देख, कल तक जो मॉल 10-20 रूपये पार्किंग के लिए हड़प लेते थे उन माल्स में पार्किंग फ्री करने के आदेश दे दिया गया.
आज शहर में आलम कुछ यूँ है कि ट्रैफ़िक की समस्या के कारण जिस रिलीफ़ रोड पर ज़रूरी काम होते हुए भी लोग जाना टाल देते थे आज वह पूरा एरिया आप 15 मिनट में घूम के आ सकतें हैं! घूम रहे होंगे तो एक चीज़ आप सब विस्तारों में कॉमन पाएँगे कि यहाँ की हरेक बस्तियों के आगे होर्डिंग्स लगे हैं जिसमें दोनो कमिश्नरों को लोग थैंक यू कह रहे हैं.

दोनो कमिश्नरों को लोग ‘रियल सिंघम’ कहकर सम्बोधित कर रहे हैं.

उनका नाम हर दूसरे अहमदाबादी की ज़ुबान पर है. हर तीसरे अहमदबादी के फेसबुक टाइम-लाइन पर उनकी फ़ोटो है, हर चौथे के व्हाट्सप्प पर उनका स्टेटस है. लोग कह रहे हैं “अब लगता है सच में अच्छे दिन आ गए.”
खास फायदा क्या हुआ है?
लोगो का कहना है, पहले ऐसा जब कोई बड़ा नेता आता था तभी होता था लेकिन पिछले 1 महीने से चल रही पुलिस और कॉर्पोरशन की इस मुहीम ने लोगो का प्रशाशन के प्रति देखने का रवैया बदल दिया है.
SEPT युनिवर्सिटी के एक सर्वे के अनुसार, सड़कों से अतिक्रमण हटने से सड़कें चौड़ी हो गई हैं. ट्रैफिक की समस्यायों में कमी हुई हैं और इससे पेट्रोल और डीज़ल की बचत होने लगी है. सर्वे के अनुसार इस मुहीम के कारण, टू-व्हीलर्स में सालाना करीब ₹200 करोड़ और फोर-व्हीलर्स में सालाना करीब ₹220 करोड़ की बचत होगी.
इसके अलावे, शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में अमूमन जो समय लगता था उसमे 16% की कमी आई है.
पुलिस और कार्पोरेशन के इस एक्शन से कुछ ठेले वालों के लिए रोजी की समस्या उत्तप्न हो सकती है लेकिन प्रशासन ने इसके लिए भी व्यवस्था लाने का काम शुरू दिया है.
तो कुल मिलाकर प्रशासन के इस एक्शन से अहमदबादियों में हर्ष का माहौल है. दूसरे राज्यों की सरकारें ‘गुजरात मॉडल’ अपनाएं या ना अपनाएं लेकिन पर अहमदाबाद शहर के इस ‘एंटी-अतिक्रमण मॉडल’ को जरूर अपना सकते है.
जब दोनों अफसरों के तबादले की बात ने तूल पकड़ा था
पुलिस कमिश्नर अनूप कुमार सिंह और म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा के ‘एंटी-अतिक्रमण’ वाले सख्त एक्शन के बीच शहर में इस बात की अफवाहों ने भी जोर पकड़ा था कि अफसरों के कारण शहर के भ्रष्टाचारियों को गहरी चोट हुई है. इस वजह से दोनों को डेपुटेशन में दिल्ली भेजा जा रहा है.
इस बात कि भनक शहरियों को लगते ही सभी जगह उनके दिल्ली जाने का विरोध शुरू हो गया. व्हाट्सअप-फेसबुक से लोग बहार कूदकर सड़कों पर आ गए. इसी बीच किसी ने दोनों अफसरों का मोबाइल नंबर भी लिक कर दिया. इसके साथ ही दोनों अफसरों को अहमदाबाद नहीं छोड़ने के लिए फ़ोन कॉल्स का ताँता लग गया. पुलिस कमिश्नर अनूप कुमार सिंह को 12 घंटे में करीब 5000 कॉल्स और एसएमएस आएं वहीं म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा को 2000 कॉल्स आये थे.
इस माहौल से निपटने के लिए दोनों अफसरों ने शहर की जनता से अपील की कि “जनता की भावनाएं सराहनीय हैं लेकिन अभिनन्दन, शुभकामनायें या दूसरी भावनाओं को पहुंचाने के लिए पर्सनल नंबर का उपयोग न करें.”
पुलिस कमिश्नर अनूप कुमार सिंह ने कहा था कि “चार महीने पहले मेरा इम्पैनलमेंट में नाम आया है. यदि केंद्र को मेरी सेवा की जरुरत होगी तो मेरा वहां तबादला हो सकता है लेकिन यह तबादला ट्रैफिक के अभियान के तहत नहीं है.”
वहीं म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा ने कहा था कि “लोगों की अपेक्षाओं में इज़ाफ़ा हुआ है जिसे पूरा करने के लिए मेरा प्रयास जारी रहेगा. साथ ही ऐसे नए कैंपेन लांच किये जाएंगे जिसमे बड़ी मात्रा में लोग भी जुड़ सके. सरकारी प्रक्रिया के हिसाब से मेरा केंद्र के इम्पैनलमेंट में नाम आया है लेकिन इसका अर्थ तबादला नहीं है.”
ये भी पढ़ें :


