
बवाल मचा हुआ है एक काले जड़ाऊ पिन पर, अरे हाँ वही “Blackamoor brooch”
ब्रिटिश राजकुमारी माइकल के वार्षिक क्रिसमस भोज में काला जड़ाऊ पिन (ब्लैकमूर ब्रोच) पहनकर जाने से सोशल मीडिया पर रोष व्याप्त हो गया। कुछ लोगों ने इसे ‘‘जातिवादी व नस्लवादी’’ बताया। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार केंट की राजकुमारी माइकल, जिन्होंने क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के पहले चचेरे भाई से शादी की है, बुधवार को ब्लैकमूर ब्रोच पहनकर बकिंघम पैलेस में एक वार्षिक क्रिसमस भोज में शामिल हुई थीं।
इस पार्टी में रायता बना नहीं था, लेकिन फैला!
रिपोर्ट के अनुसार क्रिसमस के इस भोज में प्रिंस हैरी की मंगेतर, मेघन मार्कले भी मेहमान थी, जिनकी मां अश्वेत थी। सोशल मीडिया पर राजकुमारी की काफी निंदा हुयी जिस पर उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी।
राजकुमारी के प्रवक्ता सिमोन एस्टायरे के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है राजकुमारी बहुत दुखी और परेशान हैं। उन्होंने कहा, ”यह ब्रोच एक उपहार था और इससे पहले इसे कई बार पहना जा चुका है। राजकुमारी इससे बहुत दुखी है कि उनसे यह अपराध हुआ।’’
आखिर ये काला जड़ाऊ पिन या Blackamoor brooch है क्या?

ब्लैकमूर ब्रोच 17वीं और 18वीं शताब्दी के समय की कलाकृति है। यह सामान्यत: मूर्ति, आभूषण और कपड़ों पर मिलती है जिन पर अक्सर अश्वेत पुरूषों और महिलाओं को दास के रूप में दर्शाया जाता है। ब्लैकमूर, जो कि एक काले रंग के आदमी का नमूना होता है, जो प्रारंभिक आधुनिक काल में यूरोपीय कला में प्रयोग किया जाता था। ये कलाकृतियाँ विभिन्न रूपों में होती हैं, अक्सर ट्रे या किसी अन्य कंटेनर को पकड़े हुए, जैसे एक गुलाम व्यावहारिक उपयोग के लिए उपलब्ध हो। वे गहने, हथियार और सजावटी सामानों के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। वे अक्सर एक प्रतीकात्मक सेवक को दर्शाते हुए एक स्वामी-भक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, और अक्सर दरवाजे से सटकर रखे जाते हैं क्योंकि प्रायः असली सेवक यहीं खड़े होते हैं। ये नमूने आमतौर पर सस्ती सामग्री पर बनाये जाते थे, जैसे कि चित्रित लकड़ी या प्लास्टर।

भारत के संदर्भ में एक किस्सा काफी लोकप्रिय हुआ….कि 19वीं सदी में एक अग्रणी भारतीय उद्योगपति जेआरडी टाटा को भारतीय होने के कारण मुंबई के वाटसन होटल में प्रवेश करने से रोका गया था। वाटसन होटल के बाहर एक बड़ा बोर्ड लगाया गया था जिसमें कहा गया कि ‘कुत्तों और भारतीयों को प्रवेश की अनुमति नहीं है’।
हम भारतीय बाकई अंग्रेजों से पीछे रह गए। हमें नस्लभेद, रंगभेद के बारे में कुछ भी पता नहीं। हम तो भगवान को भी काला बोलते हैं, कुकरमुत्ता खाकर गोरे हो जाते हैं। एक ओर भीमराव को संविधान निर्माता मानते हैं तो वहीं प्रधानमंत्री तक को ‘नीच’ तक कह देते हैं, और भगवा गमछा गले में डालें तो हम संघी कहलाते हैं….बड़े ही प्यार और सद्भाव भरी जीवनशैली है हम भारतीयों की।