तथाकथित मीडिया है न जो, ससुर बहुतई चंचल है। इनका का बताये कुछ आइसा है कि TRP नाम की अफीम चखाये जाओ और करवा लो इनसे, जो चाहो। बौराये जात है कबहूँ-कबहूँ। फ़िल्म पद्मावती की शूटिंग से लेकर रिलीज तक बहुत बार TRP की अफीम भारतीय मीडिया ने चखी….शायद उसी का नशा था कि मीडिया झूठी खबरें भी पेलने लगी। मीडिया का दावा था कि सारे विवाद सुलझ गए और रिव्यू कमिटी ने फ़िल्म के रिलीज को हरी झंडी दे दी, लेकिन सुमड़ी में तो कुछ और ही चल रहा है…..

‘पद्मावती’, फ़िल्म क्या जी, बबाल है बबाल। फ़िल्म को बनाने वाले लोग कह रहे हैं कि इतिहास के साथ हमने कोई छेड़छाड़ नहीं की….विरोध करने वाले हिन्दू संगठनों का दावा है कि छेड़छाड़ क्या, ज्यादती कर डाली है। राजपूतों का तो ऐसा है कि रानी पद्मावती को ‘देवी’ और ‘माता’ कहकर सम्बोधित करते हैं…उनकी मान्यताएं और भावनाएं जुड़ी हुई हैं रानी पद्मावती से…..उधर फिल्मी व्यापारी संजय लीला भंसाली ने विवाद बढ़ने और करणी सेना के विरोध के बाद रानी पद्मावती को माता कहा था और कहा था कि इस फ़िल्म में पद्मावती के  सम्मान तथा इतिहास की मर्यादा, दोनों का ख्याल रखा गया है….परन्तु बाद में भंसाली जी रानी पद्मावती के किरदार और इस फ़िल्म को काल्पनिक बताते नजर आए।

मेवाड़ राज घराने के अरविंद सिंह, जो कि फ़िल्म की समीक्षा हेतु गठित समिति का हिस्सा थे, उनका कहना है कि यह फ़िल्म तो इतिहास के आसपास भी नहीं है। इस फ़िल्म में मेवाड़ के इतिहास और समृद्ध परंपरा का कबाड़ा किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह फ़िल्म को रिलीज नहीं किया जाना चाहिए, इससे माहौल बिगड़ने की आशंका है तथा सामाजिक समरसता को भी इससे खतरा है…..आपको बता दें कि फ़िल्म समीक्षा के लिए बनाई गई समिति में प्रोफेसर कपिल कुमार, इतिहासकार चन्द्रमणि सिंह, और अरविंद सिंह शामिल थे। अरविंद सिंह के अनुसार, फ़िल्म देखने के बाद तीनों ही सदस्य इस फ़िल्म को ‘रिलीज नहीं’ करने के पक्ष में थे।(साभार राजस्थान पत्रिका)

गौर करने वाली बात यह है कि फ़िल्म की समीक्षा के लिए बनाई गई समिति में सदस्यों की संख्या भी अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है! मात्र तीन लोग बैठकर इस बात का फैसला कर रहे हैं कि 130 करोड़ लोगों को क्या देखना चाहिए! और फिर समिति सदस्यों पर भी सवालिया निशान है क्योंकि मेवाड़ राज घराने के महेंद्र सिंह, जिन्हें शायद इस समिति का हिस्सा होना चाहिए था परन्तु उन्होंने यह फ़िल्म नहीं देखी। महेंद्र सिंह के पुत्र विश्वजीत सिंह ने प्रसून जोशी को पत्र भेजा जिसमें लिखा था कि फ़िल्म का नाम बदल देने से घटनाएं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और किरदार नहीं बदल जाएंगे।

वहीं चित्तौड़गढ़ के सर्व समाज ने भी रिव्यू कमिटी के सदस्यों के चयन को लेकर सवाल उठाए हैं, सर्व समाज का कहना है कि समीक्षा समिति में मेवाड़ से सम्बंधित एक भी इतिहासकार नहीं था, फिर न्याय कैसे हुआ।

खैर रिलीज तो गयी घुइयां के खेत में, अब ये बताओ कि आगे क्या….कुछ नहीं, कोई और मुद्दा, कोई और अड्डा, अफीम न सही, चरस भी चलेगी। अपन नशेड़ियों का ऐसा ही है….कुछ भी चलता है, बस नशा भैरण्ट होना चाहिए। आखिर हमारी मीडिया को इतनी भड़भड़ी रहती क्यों हैं? क्या सच में हमारा तथाकथित मीडिया TRP नामक चरस का लती हो गया है…..जैसे कोई नशेड़ी नशा न मिलने पर तड़पता है और वह नशे के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, उसी प्रकार मीडिया भी…..खैर छोड़िये इन बातों को, नहीं तो किसी की ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ भी खतरे में आ सकती है।