देश-विदेश के भारतीय जब 15 अगस्त को आज़ादी का जश्न मना रहें होते हैं, उसके ठीक एक दिन पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और दूसरे हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन कराह रहे होते हैं. ऐसा इसलिए नहीं कि उनको आज़ादी की ख़ुशी नहीं बल्कि इसलिए कि आज़ादी से कई गुना ज़्यादा इस बात का मलाल है कि इस दिन भारत माँ को खंडित कर दिया गया था. भारत के एक हिस्से को तोड़ कर पाकिस्तान नाम दे दिया गया. उसी बात का विलाप रहता है. लेकिन साथ-साथ उस खंडित भू-भाग को अखण्ड भारत में मिलाने की प्रेरणा भी दी जाती है और उदाहरण दिया जाता है इजराइल का, जहाँ यहूदियों ने 1800 वर्ष बाद अपनी मातृभूमि को पुनः हासिल किया था.
इजराइलियों के इसी त्याग, धैर्य और दृढ–संकल्प की वजह से भारत का राष्ट्रवादी कुनबा इजराइल की ओर आकर्षित होता है और इस्लामी आक्रमण के खिलाफ एक आम लड़ाई में दोनों देशों को एक साथ देखने की पैरवी भी करता है. नरेंद्र मोदी भी उसी राष्ट्रवादी कुनबे की मिट्टी में गीत गाते–गाते प्रधानमंत्री बने हैं.
“कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दूर नहीं खण्डित भारत को, पुन: अखण्ड बनायेंगे.
गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे.
उस स्वर्ण दिवस के लिए, आज से कमर कसें, बलिदान करें.
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥”
1950 में भारत ने इजराइल को मान्यता दी थी, लेकिन कूटनीतिक सम्बन्धों की शुरुआत 1992 से हुई. जिसके बाद 1962, 1965 और 1971 में जंग के वक्त इजरायल ने भारत को आधुनिक सैन्य सामान की पूर्ति की थी.
70 साल बाद जब पहली बार जब नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर इजराइल के दौरे पर गए तब वहाँ के एक प्रमुख अख़बार ने लिखा, “जागो, दुनिया के सबसे अहम प्रधानमंत्री आ रहे हैं.” द येरुशलम पोस्ट एक अलग लिंक ही बना दी जिसमें सिर्फ़ भारत से जुड़ी ख़बरें साझा की गईं. इजराइली बिज़नेस डेली ‘द मार्कर’ ने अपने हिब्रू संस्करण की सबसे प्रमुख स्टोरी में भारत–इजराइल के संबंधों पर चर्चा की और डॉनल्ड ट्रम्प के सामने मोदी को बेहद लोकप्रिय बताया. कुल मिलाकर इजराइली मीडिया ने मोदी को सराखो पर बिठा दिया था.
मीडिया तो मीडिया, इजराइली प्रधानमंत्री ने भी मोदी के स्वागत में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी! हवाईअड्डे पर जो प्रोटकॉल सिर्फ़ अमरीकी राष्ट्रपति और पोप के लिए तोड़ा जाता था वह पहली बार किसी और देश के प्रधानमंत्री के लिए तोड़ा गया. फिर नेतन्याहू का हिंदी बोलना, मोदी का हिब्रू बोलना, साथ–साथ समंदर का सैर सपाटा और ‘#आईफ़ोरआई’ का ट्रेंड होना. सच में एक गहरा दोस्ताना नज़र आ रहा था! यहाँ तक कि इजरायल सरकार ने मोदी के सम्मान में गुल दाउदी के फूल को ‘मोदी’ नाम दे दिया था.
वैसे खबर तो यह भी आई थी कि, नरेंद्र मोदी बेंजामिन नेतन्याहू को ‘बीबी’ बुलाते हैं.
लेकिन इन वाक़ियों के ठीक 5 महीने बाद जब नेतन्याहू के साथ दोस्ती की सही कीमत अदा करने का मौका मोदी को मिला तब मोदी साहब कूटनीति खेल गए और येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने वाले अमरीकी प्रस्ताव पर क्रॉस वोटिंग कर दी. हम नहीं जानते कि किसके पिछलग्गू बन कर मोदी सरकार ने ये क्रॉस वोटिंग की लेकिन कुछ महीनों पहले इजरायली मीडिया जो मोदी को दुनिया का सबसे अहम प्रधानमंत्री बता रहा था वो आज खूब घिन्ना रहा है!
इजरायल के प्रमुख अंग्रेजी अख़बार द येरुशलम पोस्ट में नेतन्याहू को कोसने के लिए भारत के प्रधानमंत्री के कंधों पर बन्दूक रखते हुए लिखा कि, “गर्मियों में नेतन्याहू और मोदी ब्रोमेंस समुद्र तट पर टहल रहे थे और जिस तरह नेतन्याहू ने भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक इज़राइली यात्रा का वर्णन किया था – ‘मुझे लगता है कि आज, भारत और इज़राइल हमारी दुनिया बदल रहे हैं और शायद दुनिया के कुछ हिस्सों को बदल रहे हैं. क्योंकि यह एक सहयोग है, यह वास्तव में स्वर्ग में बनाई गई शादी है, लेकिन हम इसे पृथ्वी पर लागू कर रहे हैं.’ इसके बाद अब अंदाज़ा लगाइये कि भारत ने पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र में किस तरह मतदान किया. और अब सोचने वाली बात है कि अगले महीने नेतन्याहू अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान किस तरह नरेंद्र मोदी के साथ येरुशलम के प्रस्ताव की निंदा करने के मुद्दे को उठाएंगे?”
मतलब साफ है, भारत के एक क्रॉस वोट ने लोगो को मौका दे दिया कि हम पर विश्वास न किया जाए. नेतन्याहू द्वारा नरेंद्र मोदी के लिए बोले गए उन शब्दों को भी आज आड़े हाथ लेने का मौका मिल गया. खासकर उस समय जब भारत में राष्ट्रवादी पार्टी की सरकार है. अपनी कूटनीति में सफल होना न होना बाद की बात है लेकिन फ़िलहाल तो भारत की विश्वसनीय साख को चोट पहुंची, नज़र आ रही है.
ज्यूइश पत्रकार नूरिट ग्रींजर लिखती है कि, “एक यहूदी के रूप में आज यह मेरे लिए दुखद दिन था. यह सच में चेहरे पर एक थप्पड़ था, जिसे पूरे ज्यूइश राष्ट्र को उसके चेहरे पर जलन से महसूस करना चाहिए. एक के बाद एक देश, आंखों की पलकों को झपकाए बिना, कानून की अंतिम सीमा तक जाकर इज़राइल को सजा दे रहें थे, तब जब वह कानून अस्तित्व में ही नहीं है, यह केवल एक धोखा है.”
ग्रींजर आगे लिखती है, “हाल ही में, नेतन्याहू भारत के साथ प्यार में गिर गए थे. भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में इज़राइल का दौरा किया तब दोनों के बीच का रोमांस व्यापक रूप से प्रदर्शित हुआ था. और जब नेतन्याहू जल्द ही भारत की यात्रा करने वाले हैं ऐसे में भारत ने आज क्या किया? भारत, संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्यीय सदस्य के 128 सदस्यों में से एक था, जिसने अमेरिका के यरूशलेम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के फैसले को वापस लेने के पक्ष में वोट किया था. क्या इस प्रकार की आपसी दोस्ती पर निर्भर रह सकते हैं? बिलकुल नहीं! क्या भारत को कम से कम दूर नहीं रखना चाहिए?
इसके अलावा इजराइल में एक वीडियो बहुत ट्रेंड कर रहा हैं जिसमें बताया गया है कि दुनिया में इजराइल से 151 बड़े देश है लेकिन कहीं भी आपदा राहत भेजने की बात हो तो हमेशा इजराइल ही पहला होता है. नेपाल में भूकंप हो, फ़िलीपीन्स में आंधी हो, जापान में सुनामी हो, पाकिस्तान में भूकंप हो, श्रीलंका–इंडोनिशया में सुनामी हो या तुर्की में आतंकवादी अटैक, हर समय इजराइल दूसरे देशों के साथ खड़ा हुआ है लेकिन आज इजराइल के साथ कोई खड़ा नहीं हुआ. दुनिया का यह बदसूरत चेहरा दिन–ब–दिन इजराइल के चेहरे को खूबसूरत बना रहा है.
कुल मिलाकर दिमागी तंतु अब सुब्रह्मण्यम स्वामी के उस ट्वीट को अच्छे से समझ पा रहें हैं जब उन्होंने कहा था कि, “भारत ने अमेरिका और इजरायल के साथ मतदान नहीं करके एक बड़ी गलती की है.”
India has made a huge mistake by not voting with US and Israel on US decision to choose West Jerusalem as location for its Embassy. At present UN holds holy city of Jews as partitioned. West Jerusalem is Israel’s. Hence Embassy can be there
— Subramanian Swamy (@Swamy39) December 22, 2017
उन्होंने एक और ट्वीट में कहा था कि, “ये फैसला भारत के हित में नहीं है. फ़िलिस्तीन ने कश्मीर के मुद्दे और इस्लामी आतंकवादी हमलों पर भारत का कभी समर्थन नहीं किया है. इसराइल हमेशा भारत के साथ खड़ा था”
It is against India’s national interest to vote for the pro-Palestine Resolution in the UNGA. Palestine has never supported India on Kashmir question and Islamic terror attacks. Israel has stood with India always.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) December 21, 2017
उन्होंने आगे कहा कि, “हमने हमेशा फिलिस्तीन का समर्थन किया है, जो कश्मीर के मामले में हमेशा हमारा विरोधी रहा है.”