यूँ तो जम्मू-कश्मीर को साथ लिखा जाता है लेकिन पुलवामा की घटना के बाद मानो इन दो शब्दों के बीच का डैश एक मज़बूरी बन गया है. सबसे बड़ी बात है कि राज्य की जनसँख्या, विधानसभा के ढांचे, राजनीति और अन्य मुद्दों पर हमेशा से कश्मीर का दबदबा रहा है. अक्सर गुस्से, विरोध और उन्माद भरी तस्वीरों के लिए कश्मीर को जाना जाता है लेकिन पुलवामा हमले के बाद जिस तरह जम्मू के लोगों का गुस्सा फूटा है, हमें ये माहौल कुछ अलग सोचने पर मजबूर करता है.
पुलवामा हमले के बाद जम्मू के साइंस कॉलेज समेत कई जगहों पर कथित रूप से कश्मीरी छात्रों द्वारा देशविरोधी नारेबाजी की गई. इससे जम्मू में माहौल लड़खड़ा गया और गुस्से में जम्मू के लोगों ने रैलियां निकालकर स्थानीय कश्मीरियों की गाड़ियां व दुकानें फूंक दी.
इसके बाद जम्मू शहर में ज्वैल चौक, पुरानी मंडी, रेहारी, शक्तिनगर, पक्का डंगा, जानीपुर, गांधीनगर और बक्शीनगर समेत दर्जनों स्थानों पर लोगों ने पाकिस्तान के विरोध में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन हुए. इस दौरान कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर पत्थर फेंकने की घटना ने आग में घी डालने का काम किया. नतीजन उसी रोज जम्मू में कर्फ्यू लगा दिया गया.
पिछले कुछ दिनों में जम्मू शहर के जिन क्षेत्रों से भारत विरोधी नारेबाज़ी की सूचनाएं सामने आई थी, वहां की दीवारों पर सोमवार की सुबह ऐसे संदेश लिखे पाए गए जिनमें साफ कहा गया था कि अगर जम्मू में रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा. इन संदेशों में ऐसे लोगों को जम्मू छोड़ने की चेतावनी भी दी गई जो भारत विरोधियों का समर्थन करते हैं.
ये संदेश चाहे चंद दीवारों पर लिखे गए थे लेकिन पुलवामा हमले के बाद कश्मीरियों के खिलाफ जम्मू के लोगों के गुस्से के स्तर को बयां कर रहे हैं. लेकिन क्यूँ ?
क्या गुस्से के ये बादल बरसों से भरे हुए हैं?देखा जाये तो जम्मू-वासियों के इस शिकायतपरस्ती की वजह या यूं कहे सियासत से दरकिनार होने को आजतक कोई खासा तवज्जो देने को कोशिश नहीं की गयी. जम्मू वासियों का कश्मीरियों के प्रति अलगाव का गुबार पुलवामा की घटना के बाद ज्यादा फैला नजर आता है. गुस्से का सबसे बड़ा कारण है कि पिछले दशकों से कश्मीर की वजह से जम्मू को नजरअंदाज किया जा रहा है. लोगों का मानना है कि इतने वर्षों में जम्मू को जिस विकास की ऊंचाई को छूना चाहिए था वह कश्मीर की वजह से संभव नहीं हो पाया है?
हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि अधिकतर कश्मीरी पाकिस्तान के बहकावे में आकर अपना भविष्य भारत के साथ नहीं देखना चाहते. इसी वजह से कश्मीर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों का गढ़ बना हुआ है.
जम्मू-वासियों को अब लगने लगा है कि वे कश्मीर नेतृत्व के नीचे चल रहे हैं. जम्मू के मुद्दों की अनदेखी की जा रही है और कश्मीरियों द्वारा जम्मू के युवाओं के साथ भेदभाव की नीति आज तक जारी है.
जम्मू के लोगों को विकास और सरकारी नौकरियों के मामलों सहित फंडों के आवंटन में भी उपेक्षित रहना पड़ता है. इस बात पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी और भारतीय जवानों के खिलाफ पत्थरबाजी करने के बावजूद राज्य सरकार के अधिकांश प्रमुख पदों, प्रशासन, वित्त विभाग, पुलिस और न्यायपालिका में कश्मीर संभाग के लोगों का वर्चस्व है. इस वजह से भी जम्मू और लद्दाख के लोगों में निराशा के साथ-साथ गुस्सा भरा हुआ है.
जम्मू-वासियों के इस गुस्से की ज़िम्मेदार भाजपा-कांग्रेस जैसी राजनैतिक पार्टियाँ भी हैं. जम्मू के अधिकतर लोगों का राजनैतिक झुकाव राष्ट्रीय पार्टियों की तरफ रहा है, लेकिन ये पार्टियाँ हमेशा कश्मीरी नेताओं को खुश करने की जद्दोजहद में लगी रहती हैं. राज्य की पूर्व पी.डी.पी.-भाजपा गठबंधन सरकार इसका सबसे बेहतर उदाहरण है. पी.डी.पी. को कश्मीर संभाग से सबसे अधिक सीटें मिली थी और भाजपा को जम्मू से लेकिन अंत तक सरकार की कमान पूरी तरह से पी.डी.पी. के हाथ में रही. भाजपा ने मानो पूरी तरह से पी.डी.पी. के आगे अपने घुटने टेक दिए थे जिस वजह से जम्मू-वासियों में खूब नाराज़गी है. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती पहले से ही कश्मीरी अलगावादियों और उग्रवादियों से हमदर्दी रखती हैं जिस वजह से जम्मू में उनकी छवि देश विरोधी मानी जाती थी लेकिन बाद में मुख्यमंत्री की गद्दी पर उन्हीं को बिठाने से जम्मू-वासियों की नाराज़गी अपने चरम पर पहुँच गई.
आज जब कभी हम अख़बार या टीवी देखतें हैं जम्मू-कश्मीर को लेकर सिर्फ आतंकवाद और पाकिस्तान परस्ती की ख़बरें प्रमुख रहती हैं जबकि इसका मुख्य कारण कश्मीर संभाग के ही लोग हैं लेकिन फिर भी दुनिया भर में समूचे जम्मू-कश्मीर को लेकर लोगों के मन में आतंकवाद की तस्वीर बनती है. तो जम्मू का आम आदमी अपने संभाग की इस तरह की छवि अंतराष्ट्रीय स्तर पर देखता है तो कश्मीर के प्रति रोष और अधिक बढ़ जाता है.
जम्मू को अलग राज्य बनाने की मांग
कश्मीर में दिन-ब-दिन बढ़ रहे उग्रवाद की वजह से राज्य की स्थितियाँ तमाम कोशिशों के बावजूद संभलने का नाम नहीं ले रही और यह कहीं न कही जम्मू के लोगों को ज्यादा चुभ रहा है.
केंद्र सरकार ने भले ही जम्मू और कश्मीर के बाद लद्दाख को अलग प्रशासनिक और राजस्वसंभाग बनाने हेतु मंजूरी दे दी है लेकिन नज़दीकी भविष्य में इससे राज्य की समस्याओं का अंत होता नहीं दिख रहा.
एक समय था जब भारत का पूर्वोत्तर भी कुछ इसी तरह की समस्याओं के चलते अशांत रहा करता था तब छोटे-छोटे राज्य बनाकर स्थितियों को काबू में किया गया. इसी की तर्ज पर जम्मू-वासी भी खुद को कश्मीर से अलग एक शांत, खुशहाल और विकसित राज्य में देखना चाहते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इस भावना को समझा ही नहीं जा रहा या नजरअंदाज किया जा रहा है.
पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर से भाजपा के प्रभारी राम माधव ने ईमानदारी से स्वीकार किया था कि “हमारी सरकार जम्मू कश्मीर के हालात सुधारने में नाकाम रही है. कश्मीर के तमाम निवासी पाकिस्तान के बहकावे में आकर अपने को भारतीय ही नहीं मानते. वे अपने को जो भी मानें धरती तो भारत की है इसलिए अलग प्रान्त बनाकर पूरे समय उसका प्रशासन श्रीनगर से चलाना आसान रहेगा. दूसरी तरफ जम्मू क्षेत्र के निवासी पत्थरबाज नहीं हैं इसलिए वहां का विकास न रुके इसलिए अलग प्रान्त सहायक होगा.”
पिछले विधानसभा चुनावों में भी स्थानीय नेताओं के जम्मू को अलग राज्य बनाने के मुद्दे को खूब भुना था.
2016 में ऊधमपुर से निर्दलीय विधायक पवन गुप्ता ने कहा था कि “यह उचित समय है जब जम्मू को कश्मीर से अलग कर दिया जाए. जम्मू-वासी अब और बंधुआ मजदूर बनकर नहीं रह सकते.”
ग़ौरतलब है कि कश्मीर समस्या के हल हेतु आरएसएस की ओर से भी जम्मू को अलग प्रदेश बनाने की बात कही जा चुकी है.
2017 में जम्मू को अलग राज्य बनाने की मुहिम की कमान पैंथर्स पार्टी के प्रधान बलवंत सिंह मनकोटिया ने संभाली थी. उनका कहना था कि “राज्य की सभी समस्याओं का समाधान जम्मू के अलग राज्य बनने से ही हो सकता है.” उन्होंने आगे कहा कि “जम्मू संभाग के लोग देशभक्त हैं. वे अधिक देर तक कश्मीर व दिल्ली के नेताओं की गुलामी नहीं कर सकते. जम्मू के साथ हमेशा ही भेदभाव होता आया है. बात चाहे रोज़गार की हो या विकास की, जम्मू के लोगों को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है. लोगों ने भाजपा को जनादेश दिया, लेकिन भाजपा जम्मू के लोगों की आकांक्षाओं पर पूरा उतरने में नाकाम रही है.”
2018 आते-आते अलग जम्मू राज्य की मांग ने रफ़्तार पकड़ ली. बीजेपी-पीडीपी सरकार में मंत्री रहे चौधरी लाल सिंह ने अपनी अनगिनत रैलियों में इस मुद्दे को उठाया था. साथ ही इसके लिए महा-प्रदर्शन की चेतावनी भी दे चुके हैं.
नेशनल जस्टिस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. राणदीप सिंह परिहार ने भी जम्मू-कश्मीर के स्थायी समाधान के लिए जम्मू के अलावा कश्मीर व लद्दाख को स्वतंत्र राज्य बनाये जाने की वकालत की है. उनका मानना है कि इसी से राज्य के मसले का हल निकलेगा. इस बात को समझाने के लिए उन्होंने जागृति अभियान छेड़ दिया है और उनकी पार्टी के कार्यकर्ता गांव-गांव पहुंच कर लोगों को इस विषय पर जागरूक कर रहे हैं.
श्री राम सेना ने भी जम्मू और कश्मीर प्रांतो को अलग राज्य तथा लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देकर राज्य के पुनर्गठन की मांग उठाई है. उनका कहना है कि “हम राज्य को तीन हिस्सों में बाँटने के पक्ष में नहीं हैं लेकिन अलगावादियों और हुर्रियत के नेताओं द्वारा पैदा किये गए हालातों के चलते हमें इस तरह की मांग उठाने के लिए विवश होना पड़ा है. राज्य का तीन हिस्सों में बँटवारा ही एकमात्र विकल्प है, इससे जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के लोगों की आकांक्षाएं पूरी हो सकती है.”
क्या जम्मूवासी अब अपनी सियासती नजरअंदाजी के खिलाफ आमादा है?
इतने वर्षों से जम्मू जिन कारणों से पिछड़ रहा है और वहां के लोगों की व मुद्दों की उपेक्षा हो रही है इसके पीछे राजनैतिक कारण है, लेकिन लगातार नज़रअंदाज़ होने की वजह से एक गुस्से का उबाल सा उठ चुका था जिसको पुलवामा हमले के बाद देखा जा सकता है.
कश्मीरियों के खिलाफ भड़के इस माहौल के कारण रातों रात हजारों कश्मीरी जम्मू से पलायन कर घाटी पहुंच गए.
मौजूदा स्थिति 90 के दशक की याद दिलाती है जब रातों-रात कश्मीर से पंडितों को भी पलायन करना पड़ा था.
आपको बता दूँ कि ठंड और बर्फ़-बारी के कारण कश्मीर में इन दिनों स्कूल और कॉलेजों की छुट्टियाँ रहती हैं. इसी कारण ज्यादातर कश्मीरी जम्मू आ जाते हैं.
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्षों बाद जम्मू में इस तरह का जनाक्रोश नज़र आ रहा है. अति व्यस्त सतवारी चौक हो या हो एशिया चौक! दुकाने हों या यातायात सब पुलवामा हमले के बाद 6 दिनों तक बंद रहा. नई बस्ती चौक में प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे नवीन गुप्ता ने कहा कि “अब समय आ गया है कि कश्मीर में देश विरोधी तत्वों को चुन चुनकर मारना चाहिए! जम्मू के लोगों की जन-भावनाओं को समझकर सरकार को कड़ा फैसला लेना होगा.”
जम्मू में हो रहे प्रदर्शनों की बड़ी बात यह भी है कि इस बार कांग्रेस-भाजपाजैसे तमाम संगठनों के कार्यकर्ता एक हो गए हैं और गली-मोहल्लों में बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी प्रदर्शनों का हिस्सा बन रही हैं.
जम्मू शहर के महेशपुरा चौक में जब सड़क से गुज़र रहे वाहन चालकों ने प्रदर्शनकारीयों से प्रदर्शन नहीं करने के बारे में कहा तो सामने जवाब मिला कि “कश्मीरी हमारे जवानों पर पत्थर बरसायें, हमले करें और हम प्रदर्शन भी न करें! हम आतंकियों को स्पष्ट सन्देश देना चाहते हैं.”
पुलवामा अटैक के बाद जम्मू में हिंसा सुलग उठी
पुलवामा हमले के बाद जम्मू के जीजीएम साइंस कॉलेज में देश-विरोधी नारेबाज़ी के विरोध में चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री जम्मू ने 15 तारीख को जम्मू संभाग में बंद की घोषणा की थी जिसे विभिन्न राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक संगठनों का समर्थन था.
आप को बता दें कि जम्मू और कश्मीर के बीच व्यापार के सम्बन्ध में कश्मीर चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री और चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री जम्मू संगठन कार्यरत हैं लेकिन मौजूदा स्थिति में दोनों संगठन भी आमने-सामने आ गए हैं. फिदायीन हमले के बाद कश्मीर चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने जम्मू में कश्मीर विरोधी हालत के लिए जम्मू चैंबर को जिम्मेदार ठहराते हुए जम्मू से व्यापार संबंध तोड़ने की धमकी भी दी है.
जम्मू बंद के दौरान गुज्जर नगर इलाके में दो समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी जिसमे दो दर्जन से अधिक गाड़ियों को फूंक दिया गया. रिपोर्ट्स के अनुसार, हमले से आहत प्रदर्शनकारी जब पाकिस्तान विरोधी नारों के साथ गुज्जर नगर इलाके में पहुंचे तो एक समुदाय की तरफ से उनपर पाकिस्तान समर्थित नारों के साथ पत्थर फेंके गए. जिसके बाद माहौल बिगड़ गया. भगदड़ में करीब 40 से अधिक लोग घायल हो गए और स्थिति को शांत करवाने हेतु पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े.
शुक्रवार, 15 फरवरी को बिक्रम चौक पर लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती, उम्र अब्दुल्ला और हुर्रियत नेताओं के खिलाफ नारेबाज़ी की.
साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना के साथ जम्मू के दूसरे भी बड़े नेताओं में भी पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ डोगरा चौक से विक्रम चौक तक रोष रैली निकाली.
प्रदर्शनों के दौरान जम्मू के मुट्ठी से एक युवक की मौत भी हो गई.
माहौल और अधिक बिगड़ गया जब प्रदर्शनकारी जम्मू में कश्मीरी कर्मचारियों के गवर्नमेंट क्वाटर्स के इलाके जानीपुर के पास से गुज़र रहे थे तब क्वाटर्स से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने शुरू हो गए. साथ ही इमारतों से पत्थरबाज़ी शुरू हो गई.
स्थितियाँ इस कदर बिगड़ी कि मंदिरों के शहर से पहचाने जाने वाले जम्मू शहर में रघुनाथ मंदिर, वाले वाली माता, पीरखो मंदिर समेत मुख्यतः मंदिरों के कपाट बंद रहे.
जम्मू विश्वविद्यालय को 17 और 18 फरवरी को होने वाली तमाम परीक्षाओं को रद्द करना पड़ा.
रविवार की एक रिपोर्ट के अनुसार जम्मू के लोग राज्य(जम्मू-कश्मीर) की पुलिस के रवैये से खुश नहीं हैं. लोगों का कहना है कि जानीपुर में कश्मीरी परिवारों ने पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी की और शांति से गुज़र रही रैलियों पर पत्थर फेंके लेकिन पुलिस ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की उल्टा जम्मू के लोगों पर ही लाठी-चार्ज शुरू कर दिया. लोगों के पास इमरजेंसी-पास होने के बावजूद पुलिस द्वारा बदसलूकी की गई. ख़बरें तो यहाँ तक भी थी कि पुलिस ने जम्मू के युवाओं को घर में घुस कर पीटा.
इसी बीच पुलिस ने शहर में तैनात एक जवान पर भी लाठियाँ चला दी. इस मुद्दे पर सेना के बड़े अधिकारी ने तुरंत एसएसपी से बात की और कहा कि “पुलिस का यह तरीका सही नहीं है. अगर सेना की वर्दी में भी पुलिस जवानों को पहचान नहीं पा रही तो फिर भगवान ही मालिक है.”
जम्मू के लोगों का कहना है कि “सिर्फ इंडियन आर्मी के हाथों में ही शहर की सुरक्षा होनी चाहिए. सेना शहर में शांति से लोगो को समझा रही है, जिनकी बात लोग मान भी रहे हैं लेकिन पुलिस का रुख माहौल बिगड़ने वाला है. यदि जानीपुर कॉलोनी के पास आर्मी होती तो हालत इतने ख़राब न होते.”
माहौल को संभालने हेतु पुलिस महानिरीक्षक मुनीश कुमार सिन्हा ने जम्मू की कुछ सोसायटियों के प्रतिनिधियों को बुलाकर भाईचारे हेतु बैठक भी की थी.
रविवार तक जम्मू जिले के लगभग 50 पेट्रोल पम्पों को या तो पुलिस ने बंद करवा दिया या ईंधन की कमीं से जूझ रहे थे.
हमले के चार दिनों बाद सोमवार को साउथ जम्मू में ज़रुरी सामान की किल्लत पूरी करने के लिए तीन घंटे कर्फ्यू से छूट दी गई. साथ ही जानीपुर कॉलोनी के सरकारी क्वार्टरों से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले एक शक्श को गिरफ्तार कर देशद्रोह के मामले में जाँच शुरू की गई है.
साथ ही खबर आई कि जम्मू में रहने वाले करीब तीन हजार से ज्यादा कश्मीरियों को रातों रात 500 वाहनों में रवाना कर दिया गया.
चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री जम्मू के प्रधान ने पत्रकारों से रूबरू होते हुए कहा कि “जम्मू और कश्मीर के बीच बंद व्यापार से करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है लेकिन सुरक्षाबलों के मनोबल को बढ़ाने तथा जम्मू के लोगों हित के लिए छह माह भी जम्मू बंद रखना पड़ा तो हम पीछे नहीं हटेंगे.”
साथ ही प्रधान ने कहा कि “पुलिस ने जिस तरह से देश विरोधी ताकतों से नरमीं बरती है और लोगों पर लाठियाँ बरसायी गयी, यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”
मंगलवार को शहर में कर्फ्यू से नौ घंटों की राहत दी गई लेकिन किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने हेतु स्कूल-कॉलेज बंद रखे गए.
खैर, पुलवामा हमले के बाद स्थितियाँ जो नाजुक और संवेदनशील बनी हुई, आगे अब ये देखना होगा जम्मू बनाम कश्मीर के अलगाववाद की बात किस तरह से सिस्यासी जोर पकड़ेगी.
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