भारत-रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी. वाजपेयी जी, जिनके हैप्पी फेस ने मुझे बचपन में भाषण सुनने को आकर्षित किया. जिनके सर्व शिक्षा अभियान ने मुझे स्कूल जाने को प्रेरित किया. जिनकी हिंदी का मैं कायल हूँ. जिनकी कविताओं के महिमामंडन के लिए मेरे पास कोई सार्थक शब्द नहीं है. 20 की उम्र पार करते करते 2000 से ज्यादा नेताओं को देखा और सुना लेकिन आज भी जब किसी नेता को देखने या सुनने की बात आती है तो एक ही नाम निकलता है – अटल बिहारी वाजपेयी जी.

हँसमुख चेहरा, फौलादी हौसला, बेमिसाल अंदाज़, दिल को छू लेने वाली अटलवाणी! एक अटल्ला के कितने निराले अंदाज़! बात संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण देने की हो या शहीद सैनिकों के शवों को घर भेजने की, अटलजी ने हमेशा जनता की नब्ज़ टटोली है. कवि हरिओम पंवार अटलजी के बारे में कहते है, “राजनीति के केवल एक व्यक्ति के मैंने पैर छुए हैं, वह थे अटल बिहारी वाजपेयी. उनके पैर छूकर कभी-कभी महसूस होता है कि हमने छोटा सा तीर्थ किया है.”

कविता और राजनीति दोनों में गहरा विरोधाभास है. राजनीति कहती है कि दिल में जो कुछ हो किसी को पता भी नहीं चलना चाहिए और कविता कहती है कि दिल में कही भी थोड़ी फड़फड़ाहट हो तो उसकी खबर पूरी दुनिया को होनी चाहिए! लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन में अपने भाषणों से नौजवानो में देशभक्ति की ज्वाला भभकाने वाला वह कवि अटल कब पत्रकार बना फिर कब नेता बना और कब देश का पहला गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन गया, यह किसी को पता ही नहीं चला!

संसद में अपने एक भाषण में अटलजी ने कहा था कि, “जब मैं राजनीति में आया तो मुझे पता भी नहीं था कि मैं एम.पी बनूँगा। मैं पत्रकार था! और ये राजनीति जिस तरह की राजनीति चल रही है मुझे रास नहीं आती.” तो किसी ने कहा, “तो छोड़ क्यों नहीं देते?” तब अटलजी ने कहा कि, “मैं तो छोड़ना चाहता हूँ लेकिन राजनीति मुझे नहीं छोड़ती.”

एक बार और बड़ी बेबाकी से अटलजी ने कहा था कि, “सच्चाई ये है कि कविता और राजनीति दोनों साथ साथ नहीं चल सकते। ऐसी राजनीति जिसमें  हर-रोज भाषण देना ज़रुरी है और भाषण भी ऐसा जो श्रोताओं को प्रभावित कर सके. तो ऐसे में कविता की एकांक साधना के लिए समय और वातावरण कैसे मिल सकता है!”

अटलजी के बारे में बात करते हुए मशहूर कवि अशोक चक्रधर कहते हैं कि, “वे राजनेता थे ही नहीं! राजनेता तो उनको विचारों को स्वीकार कर लेने के बाद तत्कालीन स्थितियों ने बना लिया.”

मैं नहीं जानता कि अलटजी अपने आपको किस रूप में सबसे ऊपर देखते हैं लेकिन उनसे मेरा आत्मीयता का नाता है जो मुझे हमेशा मंत्रमुग्ध करता है! मंत्रमुग्ध करने वाली उनकी कुछ नायब टिप्पणियों और भाषण सारांश को यहाँ पेश कर रहा हूँ जो अटलजी को सबसे अलग छांटती हैं:

1. अटलजी के हर अंदाज़ में कविता थी. अपनी कविताओं के बारे में बोलते हुए एक दफ़ा उन्होंने कहा था कि,


मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।

Photo – Amar Ujala

2. जनता पार्टी के विघटन के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ जिसके अध्यक्ष पद की कमान अटलजी को सौंपी गई. भाजपा के पहले अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण के दौरान उन्होंने कहा था कि,


भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद कोई अलंकार की वस्तु नहीं है! यह पद नहीं, दायित्व है. प्रतिष्ठा नहीं, परीक्षा है. यह सम्मान नहीं, चुनौती है!

3. इसी अधिवेशन में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नैतिक मूल्यों की बात करते हुए कहा था कि,


पद, पैसा और प्रतिष्ठा के पीछे पागल होने वालो के लिए हमारे यहाँ कोई जगह नहीं है. जिनमे आत्म-सम्मान का अभाव हो, वो दिल्ली में जाकर दिल्ली के दरबार में मुजरे झाड़े! 

Atal Bihari Vajpayee with LK Advani and Madan Lal Khurana (Photo – PIB)

4. 1996 में 13 दिन की सरकार चलाने के बाद संसद को संबोधित करते हुए अटलजी ने कहा था कि,


हमारे इन प्रयासों के पीछे चालीस साल की साधना है. यह कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, यह कोई चमत्कार नहीं हुआ है, हमने मेहनत की है, हम लोगों के बीच गए हैं, हमने संघर्ष किया है. पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है. यह कोई चुनाव में कुकुरमुत्ते की तरह से खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है !


5. इसी भाषण में उन्होंने सत्ता की मलाई खाने के लिए लालाहित नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि,


मैं चालीस साल से इस सदन का सदस्य हूँ. सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा है, मेरा आचरण देखा है. जनता दल के मित्रों के साथ सत्ता में भी रहा हूँ. कभी हम सत्ता के लोभ से गलत काम करने को तैयार नहीं हुए. इस चर्चा में बार-बार यह स्वर सुनाई दिया है कि वाजपेयी तो अच्छा है लेकिन पार्टी ठीक नहीं है! अच्छा है तो अच्छे वाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं? मैं नाम नहीं लेना चाहता लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो ऐसी सत्ता को मैं चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करूँगा!

Photo – Indian Express

6. संसद में लोकपाल पर बहस करते हुए अटलजी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव पर एक गहरा तंज कसा था,


अगर पार्लियामेंट अपना काम न करे और एग्जीक्यूटिव अपने फैसले न करे, मामले को लटकाएं और जब प्रधानमंत्री से पूछा जाये कि आप निर्णय क्यों नहीं करते तो उनका उत्तर ये हो कि “निर्णय न लेना भी एक निर्णय हैं.” अब यह कर्मयोग की स्थिति! कैसे देश चलेगा!

7. आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने अटलजी को जेल में कैद कर लिया था. लेकिन उन्होंने जेल में रह कर भी कलम के जरिये सरकार पर प्रहार जारी रखे. उन्होंने पूर्व उप प्रधानमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे यशवंतराव चव्हाण का नाम लेकर कैदी कविराय के रूप में इंदिरा के एकाधिकार पर कुछ इस तरह चुटकी ली,


पूछा श्री चव्हाण से नम्बर दो है कौन?
भौचक-भौचक से रहे पल-भर साधा मौन,
न कोई नम्बर दो है, केवल नम्बर एक, शेष जो है सो है !!
कह कैदी कविराय, नई गणना- गुणाक्षरी,
नारी नम्बर एक, पुरुष सब दस नम्बरी !!

8. सन 2003 में जब अटलजी भारत के प्रधानमंत्री थे. तब सोनिया गाँधी ने अटलजी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे. तब अटलजी की ओर से प्रति-उत्तर कुछ यूँ मिला,


मैंने श्रीमती सोनियाजी का भाषण पढ़ा. उन्होंने सारे शब्द इकट्ठे कर दिए हैं एक ही पैरा(ग्राफ) में. The BJP let government has shown it self to be incompetent, insensitive, irresponsible and brazenly corrupt. राजनीतिक क्षेत्र में जो आपके साथ कंधे से कंधा लगाकर काम कर रहे हैं इसी देश में, मतभेद होंगे, उनके बारे में ये आपका मूल्यांकन है! मतभेदों को प्रकट करने का ये तरीका है! ऐसा लगता है कि शब्दकोष खोल कर बैठ गए हैं और उसमें से ढूंढ ढूंढ कर शब्द निकाले गए हैं. Incompetent, insensitive, irresponsible. लेकिन ये शब्दों का खेल नहीं है. It is a government that has betrayed the mandate of people. हम यहाँ लोगों से चुन के आए हैं और जब तक लोग चाहेंगे हम रहेंगे. आपका मैंडेट कौन होता है हमारा फैसला करने वाला? किसने आपको जज बनाया है? आप या तो शक्ति परीक्षण के लिए तैयार रहिए या असेंबली के चुनाव होंगे तब कर लेंगे दो-दो हाथ.


9. सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान में अतिथि के तौर पर भाषण देते हुए अटलजी की बातों में गहरा दर्द झलक रहा था. उन्होंने कहा कि,


विदेश मंत्री के नाते मैं अफ़ग़ानिस्तान गया था. आपको सुन कर ताज्जुब होगा कि अफ़ग़ानिस्तान के मेजबानों से मैंने कहा, “मैं ग़ज़नी जाना चाहता हूँ. ग़ज़नी।” पहले तो मेरी बात उनके समझ में नहीं आई. कहने लगे ग़ज़नी तो कोई टूरिस्ट स्पॉट नहीं है. ग़ज़नी में कोई फाइव-स्टार होटल नहीं है. ग़ज़नी में आप जाकर क्या करेंगे? ग़ज़नी आप जाकर क्या देखेंगे? मैं उन्हें पूरी बात नहीं बता सकता था. मेरे हृदय में कहीं ग़ज़नी कांटे की तरह चुभ रहा है, जबसे मैंने ग़ज़नी से आये एक लुटेरे की कथा पढ़ी है और किशोरावस्था में पढ़ी है. मैं देखना चाहता था वह ग़ज़नी कैसा है!

10. भाजपा के पहले अधिवेशन में अटलजी का नारा था, “अंधेरा छटेगा सूरज निकलेगा कमल खिलेगा.” 1988 में कांग्रेसी, संसद में अटलजी का उपहास उड़ा रहे थे. तब अटलजी ने व्यापक क्रोध में कहा था कि,


उपहास उड़ाते हो आप लोग. हम तो विरोधी हैं फिर भी आप सब का सम्मान करते हैं. परन्तु आप सब में मानवता नहीं, संस्कार को तिलांजलि देने वालों एक दिन पूर्व में भी सूर्योदय होगा भाजपा का.

अटलजी की इस टिपण्णी के 28 साल बाद आख़िरकार पूर्व में भी कमल खिला और भाजपा से सर्वानंद सोनेवाल असम के मुख्यमंत्री बने.

वैसे इस अटलगाथा के कई अध्याय हैं लेकिन आज की गाथा उन्हीं के मुख से सुने संस्कृत के एक श्लोक से करना चाहता हूँ.

“न भीतो मरनादश्मिक केवलम् दुषितो यशः !!!”

भगवान राम ने कहा था कि, मैं मृत्यु से नहीं डरता हूँ. डरता हूँ तो बदनामी से डरता हूँ! लोकापवाद से डरता हूँ! और मेरी नज़र में भारत के राजनेताओं की सूची में केवल अटल बिहारी वाजपेयी ही हैं जो बेदाग हैं. जिनका लोकापवाद नहीं होता, ना ही होगा! जिनके विरोधी भी उन्हें प्रेम करते है. अपना गुरु मानते हैं.

आज वे सबके दिलो में भारत-रत्न हैं!