यू-टूब पर हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट का पुराना वीडियो देख रहा था. तब के गुजरात के मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी जी को बुलाया गया था. बतौर एंकर राजदीप सरदेसाई प्रोग्राम को मॉडरेट कर रहे थे. सो गरमागरम बहसबाजी और सवाल-जबाब का दौर जारी था. पंजाब केसरी के अश्विनी कुमार, सुहैल सेठ अपना सवाल पूछ लिए थे. अब बारी थी राजीव शुक्ला की.जैसे ही राजीव शुक्ला खड़े हुए, मोदी ने तंज कसते हुए कहा- राजीव ने ना अंपायरिंग की है, न बैटिंग, न बॉलिंग आती है फिर भी क्रिकेट में जमा हुआ है. माहौल ‘कह कर ले ली’ वाला हो गया. गौरतलब है कि पत्रकारिता से अपना कैरियर शुरू करने वाले राजीव शुक्ला राजनीति के जरिये क्रिकेट बॉडीज में घुसपैठ करने वाले एक बढ़िया उदाहरण हैं. वैसे तो अमित शाह भी फिलहाल गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. खेल संस्थानों में राजनैतिक घुसपैठ और पारिवारिक लोभ नयी बात नहीं है. सानिया मिर्जा भी भारत का आधिकारिक प्रतिनिधित्व वाले स्पोर्ट टूर्स पर अपनी माँ को बतौर मैनेजर ले जाती रहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट की बीसीसीआई के मामलों में दखलअंदाजी देने के बावजूद भी खेलों में राजनैतिक घुसपैठ बदस्तूर जारी है.
क्रिकेट सम्भावनाओं का खेल है और राजनीति अनहोनी को होनी और असम्भव को सम्भव करने का। एक राजनेता सिर्फ राजनेता नहीं होता, वह होता है एक नायक. जी हाँ, कोई भी काम कर सकता है सबमें महारथ हासिल होती है उसे. राजनेता कानून का रखवाला बन जाता है, वह शिक्षा सुधारक भी होता है, वह संस्कृति का ज्ञाता और वह आपके स्वास्थ्य को भी भलीभांति समझता है.और सबसे मजेदार बात यह है कि इन कामों को करने के लिए उसे अपनी योग्यता साबित करने कोई आवश्यकता नहीं।
परन्तु मेरे जैसे कुछ नासमझ लोग समझते हैं कि किसी भी कार्य के लिए एक न्यूनतम योग्यता निर्धारण आवश्यक है.
भारतीय राजनीति में एक क्षेत्र है ‘क्रिकेट’ या फिर कहें खेल. खेल क्या है साहब दुधारू गाय है, ऐसी गाय जिसे जब चाहे जितना चाहे दोह लो….समय-समय पर दोहन हुआ और अभी तक जारी है. इस खेल की रौनक, रूतबा और कशिश बड़े-बड़े राजघरानों से लेकर जनता के प्रतिनिधियों तक, सबको अपनी ओर खींच लेती है. खेल अकादमियों से लेकर भारतीय क्रिकेट बोर्ड तक के अध्यक्ष बनने के लिए एकमात्र योग्यता है राजनीति में आपकी पैठ. आपको क्रिकेट के बारे में कितना पता है या आपने यह खेल कभी खेला भी है या नहीं या आप इस खेल के भविष्य को लेकर कितने सजग हैं….ये सब बातें बिल्कुल भी महत्व की नहीं.
लालू प्रसाद यादव, राजीव शुक्ला एवं अमित शाह जैसे कई नाम हैं जिन्होंने इस खेल की अलग-अलग संस्थाओं का प्रतिनिधित्व किया, परन्तु क्या मजाल कि क्रिकेट से कोई लेना-देना रहा हो. लेना-देना रहा तो सिर्फ क्रिकेट से जुड़े वित्त से. सालों से क्रिकेट बोर्ड्स का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ लाभ के लिए होता आ रहा है परंतु एक किस्सा ऐसा भी जब एक राजनेता ने सिर्फ इसलिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड की अध्यक्षता ठुकरा दी क्योंकि…
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी. 1980 के दशक में उन्हें भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष पद की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने चूंकि कभी बल्ला पकड़कर देखा तक नहीं था इसलिए उन्होंने यह पेशकश ठुकरा दी और इस पद के लिए एनकेपी साल्वे का नाम सुझाया.
राष्ट्रपति भवन में पहले एनकेपी साल्वे स्मारक व्याख्यान में मुखर्जी ने दौरान इस बात खुलासा किया कि उनके कुछ करीबी लोगों ने 1982 में बीसीसीआई के अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने कभी क्रिकेट खेला नहीं था और वह इस खेल के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे। उन्होंने यह पद स्वीकार न करने की वजह बताते हुए कहा, ‘हालांकि मैंने क्रिकेट पर कुछ साहित्य पढ़ा था और कुछ मैच देखे थे, मैंने कभी क्रिकेट का बल्ला उठाया तक नहीं था.’
ऐसी घटनाएं अक्सर राजनीति में देखने को नहीं मिलती जब किसी राजनेता के द्वारा ईमानदारी भरा व्यवहार किया जाए, परन्तु पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का यह व्यवहार सही मायने में सम्मान का हकदार है. प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति में बहुत अहमियत रखते हैं एवं आज के दौर में राजनेताओं के लिए उनका यह व्यवहार एक मिसाल है और आशा है कि यह मिसाल अपने उद्देश्य में सफल हो.


