हालिया दिनों में पाकिस्तान की हालत बहुत खस्ता है साहब! एक ओर पाकिस्तान को मिलने वाली 1628 करोड़ की सैन्य मदद पर अमेरिका द्वारा रोक लगने के बाद पाक सरकार बौखलाई हुई है वहीं कल पाकिस्तान के भीतर से एक और करंटमार खबर आई है, जिसके कारण पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हो गया है!
खबर है कि, पाकिस्तानी अधिकारियों ने दो दिन पहले, पश्तो भाषाई ‘रेडियो मशाल’ के संचालन को बंद कर दिया है. पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने इसके कार्यक्रमों को देश के हितों के खिलाफ बताया था, जिसके बाद इस्लामाबाद से मंत्रालय ने ‘रेडियो मशाल’ को टर्मिनेट करने का आदेश जारी कर दिया.
Pakistan has ordered the closure of the offices of RFE/RL's Radio Mashaal in Islamabad after the ISI accused it of airing programs “against the interest of Pakistan.” https://t.co/IcbXIdN1iQ pic.twitter.com/j0gtaKvz0x
— RFE/RL (@RFERL) January 19, 2018
‘रेडियो मशाल’ के बारे में आपको बता दें कि यह अमेरिका की पूंजी से संचालित ‘रेडियो फ्री यूरोप’ का हिस्सा था और पाकिस्तान में इस बाजे की शुरुआत 2010 में हुई थी. ‘रेडियो मशाल’ के पाकिस्तानी व अफ़ग़ानिस्तानी बॉर्डर के पठानी इलाकों और जनजाति क्षेत्रो में अच्छे खासे लिसनर्स थे.
2016 में, पाकिस्तान के लगभग 10 मिलियन धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘रेडियो मशाल’ ने साप्ताहिक फीचर कार्यक्रम लॉन्च किया था.
अप्रैल 2017 में, कट्टरपंथी छात्रों की एक भीड़ ने ईशनिंदा के आरोप में एक युवक की हत्या कर दी थी. उस समय जब स्थानीय मीडिया ने इस घटना की रिपोर्टिंग करने से किनारा कर लिया, तब ‘रेडियो मशाल’ ने इस घटना की कहानी को लोगो तक पहुँचाया था.
इस रिपोर्टिंग के एक महीने बाद ही ‘रेडियो मशाल’ ने बलूचिस्तान में एक तालिबान समर्थक मौलवी का इंटरव्यू किया था, जिसमें मौलवी ने इस बात की पुष्टि की थी कि उसने और उसके अनुयायियों ने अफगानी तालिबान के लिए धन इकट्ठा किया है. ‘रेडियो मशाल’ के इस इंटरव्यू के बाद इस्लामाबाद में खलबली मच गई थी.
अगस्त 2017 में, ‘रेडियो मशाल’ ने अपनी चौथी पुस्तक प्रकाशित की थी, जिसका नाम था ‘मशलुना’ जिसका अंग्रेजी मतलब होता है ‘टॉर्च’. इस पुस्तक में ब्रिटिश युग में आजादी के आंदोलन में शुमार रहें पश्तून नेताओं का जिक्र था. इस पुस्तक के जरिये ‘रेडियो मशाल’ ने युवाओं को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शांतिपूर्ण तरीके अपनाने की हिदायत दी थी.
इसके अलावा पिछले साल, ‘रेडियो मशाल’ ने फाटा(Federal administered tribal areas) और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में महिलाओं के अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे कार्यकर्ताओं और संगठनों की एक रेडियो सीरीज भी प्रस्तुत की थी, जिसका नाम था ‘दा निमि नरहाई घाग’ यानि ‘The Voice of Half of The World’.
‘रेडियो मशाल’ की इसी तरह की निर्भीक रिपोर्टिंग के चलते वह कट्टरपंथियों और आईएसआई की रडार पर आ गया था . तहकील-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ‘रेडियो मशाल’ और इसके संवाददाताओं पर फतवा जारी कर दिया था और मारे गए तालिबान नेता हकीमुल्ला मेहसूद ने उन्हें सीधे तौर पर धमकी भी दी थी.
आखिरकार,दो दिन पहले वह घड़ी आ ही गई, जब एक बार फिर पाकिस्तानी सरकार ने कट्टरपंथियों और आईएसआई के दबाव के चलते इस पर प्रतिबंध लगा दिया.
पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा ‘रेडियो मशाल’ को टर्मिनेट करने की अधिसूचना में कहा गया है कि, स्टेशन द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों के मुख्य चार विषय कुछ इस प्रकार हैं:
1. पाकिस्तान को आतंकवाद के केंद्र और आतंकवादी समूहों के लिए सुरक्षित स्वर्ग के रूप में चित्रित करना
2. अपने लोगों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों और पठानों को सुरक्षा प्रदान करने के मामले में पाकिस्तान को असफल राज्य के रूप में प्रचारित करना
3. ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के पठानों, बलूचिस्तान प्रान्त और अफगानिस्तानी सीमा से सटे जनजातीय क्षेत्रों को ‘देश के साथ मोहभंग’ बताना
4. इसके अलावा, ‘रेडियो मशाल’ पर “विकृत तथ्यों के प्रसारण और उसके संस्थानों के खिलाफ लक्षित आबादी को प्रोत्साहित करने का भी आरोप लगाया गया है”
पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘रेडियो मशाल’ को बंद करने के वाकये को लोग इस बात से भी जोड़ रहें हैं कि चूँकि यह अमेरिका की पूंजी से संचालित ‘रेडियो फ्री यूरोप’ का हिस्सा था इसलिए पाकिस्तान ने इसे टर्मिनेट करके अमेरिका द्वारा सैन्य मदद रोकने का बदला लिया है.
पाकिस्तानी सरकार की इस हरकत के बाद देश-विदेश से पत्रकारों के समूह ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिज्म’ के एशिया कार्यक्रमों के समन्वयक स्टीवन बटलर ने इसे “प्रेस की स्वतंत्रता का प्रत्यक्ष खतरा” बताया है.
रेडियो मशाल के टर्मिनेशन के सम्बंध में रेडियो फ़्री युरोप/ रेडियो लिबर्टी के अद्यक्ष थोमस केंट ने कहा है कि, “रेडियो मशाल हमारे पाकिस्तानी श्रोताओं के लिए विश्वसनीय और संतुलित जानकारी देने वाला एक अनिवार्य स्त्रोत है. रेडियो मशाल किसी भी इंटेलिजेंस एजेन्सी या सरकार के लिए काम नहीं करता है. हमारे संवाददाता पाकिस्तानी नागरिक हैं, जो अपने देश को समर्पित हैं और गांवों में रहते हैं.
साथ ही केंट ने माँग की है कि उनके संवादाताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए और उन्हें डर या देरी के बिना अपने काम को फिर से शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए.”
आप को बता दें कि, पत्रकारों के लिए पाकिस्तान को सबसे खतरनाक देशों में लगातार स्थान दिया गया है. यहाँ आये दिन पत्रकारों को हिरासत में लिया जाता है, अपहरण कर लिया जाता है, शारीरिक हिंसा की जाती और धमकियाँ तो आम बात हो गई हैं.
रेडियो मशाल द्वारा प्रसारित इंटरव्यू :
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