2014 के बाद से देश में गौरक्षा शब्द बार-बार सुनने मिला रहा है. गायों की रक्षा पर बड़ा ज़ोर भी दिया जा रहा है. लेकिन सवाल है, सड़कों पर जो गायें लावारिस घूम रही हैं उसका क्या उपाय खोजा जा रहा है? यदि सड़कों पर मदमस्त बैठी इन गायों को कुछ हो गया तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा? बड़ा सवाल, इन गायों के चक्कर में जिन नागरिकों की जान जा रही है उसका ज़िम्मेदार कौन है?
रविवार की सुबह मेरे कुछ दोस्त उनके परिवारों के साथ अहमदाबाद से माउंट-आबू के लिए निकले. क़रीब साढ़े तीन घंटे का रास्ता है. वे यहाँ से 6 बजे आस-पास निकले थे. बीच में दो जगह 15-15 मिनट का ब्रेक लिया लेकिन मैंने जब उन्हें पूछा कि कितने बजे पहुंचे तो उन्होंने जवाब दिया – 11:30 बजे.
पहुँचने में हुई इतनी देरी को लेकर जब मैंने उन्हें कारण पूछा तो जवाब में उन्होंने कुछ विडियोज़ भेजे. आप भी यहाँ देखिये!
मैं भी हिन्दू हूँ! गौरक्षा में मेरा भी मानना है. मैं किसी भी तरीके से गायों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता, लेकिन इतनी सारी गायों को सड़कों पर देखकर मुझे बड़ी पीड़ा होती है. गुस्सा आता है उन लोगो पर जो इस स्थिति के ज़िम्मेदार हैं. इसमें प्रशासन का भी आँखें मूंद कर बैठे रहना चिंता का विषय है!
अहमदाबाद से आबू के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग-27 पर स्तिथि इतनी ख़राब हैं कि प्रत्येक चालक इस भय में यात्रा करता है कि गायों से टकराने के कारण कहीं कोई अनहोनी न हो जाए!
सबसे ज़्यादा स्थिति ऊंझा से पालनपुर के बीच ख़राब है. वहाँ हालात कुछ ऐसे हैं कि हाइवे पर हर 200-300 मीटर के बाद गायों का झुण्ड बैठा या खड़ा पाया जाता है. चालकों के लिए सबसे बड़ी समस्या है कि पहले तो कैसे इन गायों को खुद के वाहनों से बचाएँ, दूसरा, गायें बच गई तो खुद को कैसे गायों से बचाएँ!
गायों का सड़कों पर लावारिस घूमना धीरे-धीरे भारत के प्रत्येक शहर की समस्या बनती जा रही है और गायों से अकस्मात् के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. फिर भी प्रसाशन इस मसले का हल नहीं निकाल पा रहा है!
अहमदाबाद शहर की बात करूँ तो पिछले छः महीनों में लावारिस गायों के कारण 3 व्यक्तियों की मृत्यु की ख़बर आई है.
पिछले वर्ष जून महीने में, अहमदाबाद की बुगाटी बाइक कंपनी ने शहर में रोड सेफ्टी अवेरनेस हेतु सिटी राइड का आयोजन किया था. राइड के बाद कंपनी का असिस्टेंस सेल्स मैनेजर मोईन कुछ मित्रों के साथ गाँधीनगर की ओर जा रहा था तभी अचानक सड़क के बीच दौड़ रही गाय के साथ उसकी बाइक टकरा गई जिसमें मोईन एवं गाय दोनों की मृत्यु हो गई. मोईन ने हेल्मेट भी पहना हुआ था लेकिन अकस्मात् के बाद उसकी गाड़ी क़रीब 40 फुट तक अपने-आप घसीटती चली गई और इसी दौरान मोईन का हेल्मेट भी टूट गया.
इसी वर्ष, जुलाई महीने की घटना है. वड़ोदरा के भोगीलाल पटेल, सुबह रेवड़िया महादेव मंदिर की ओर दर्शन हेतु निकले थे तभी एक गाय ने सींगों से उनपर हमला कर दिया. हमला इतना ख़तरनाक था कि भोगीलाल हवा में बहुत ऊँचाई तक उछले एवं मुँह के बल नीचे गिरे जिससे उनके मुँह से खून निकलने लग गया. भोगीलाल के नीचे गिरने के बाद भी गाय ने पैरों से उनकी छाती पर हमला जारी रखा. आसपास मौजूद लोगों ने लकड़ियों से गाय को भगाने का प्रयत्न किया लेकिन 15 मिनट तक गाय हावी रही. पश्चात्, भोगीलाल को अस्पताल ले जाया गया जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
गाँधीनगर के एक केस में तो पुलिस ने गाय से टकरा कर मृत हुए व्यक्ति के ख़िलाफ़ ही कंप्लेंट रजिस्टर कर दी थी. इस घटना के चश्मदीद ने बताया था कि “मेरी कार उस युवक की एक्टिवा के पीछे थी. मैंने दूर से ही देख लिया था कि किस तरह गाय ने एक्टिवा चालक को चपेट में लिया, जिसमे तुरंत ही उस युवक की मृत्य हो गई थी. फिर भी हमने एम्बुलेंस को फ़ोन किया जिसके बाद अस्पताल में उसे मृत घोषित कर दिया गया.”
यहाँ ग़ौर करने वाली बात यह है कि गायों से जुड़े अकस्मातों में गायों की मौतों की संख्या अधिक रहती हैं.
गुजराती अख़बार दिव्यभास्कर की एक ख़बर की माने तो पिछले वर्ष वड़ोदरा शहर में अगस्त-सितम्बर महीने में क़रीब 7 गायों की मौतों का कारण गाड़ियों का उनसे टकराना था.
गुजरात पुलिस कार्यरत मेरे एक मित्र की सुनी जाए तो “पुलिस आये दिन गायों को पकड़ने के लिए गश्त करती है लेकिन अहमदाबाद जैसे शहरों में रबारियों(गौ-पालकों) का नेटवर्क इतना तगड़ा है कि पहली बात तो कुछ ही वक़्त में तमाम लावारिस गायें कुछ समय के लिए घर लाकर बांध दी जाती है और यदि पुलिस किन्ही लावारिस गायों को पकड़ भी ले तो बहुत जल्द छोड़ना पड़ता है.”
ऐसी तमाम बातें हैं लेकिन फिर भी शहरों में गायों का लावारिस घूमना एक बड़ी समस्या बनती जा रही है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
अहमदाबाद के कृष्णा अध्यारु डी-केबिन साबरमती के पास रहते हैं, वे 29 अगस्त से लगातार अपने विस्तार में घूम रही लावारिस गायों की कंप्लेंट नगर निगम में कर रहे हैं लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है. उनके मुताबिक “नगर निगम द्वारा बगैर किसी स्थाई कार्रवाई के बार-बार शिक़ायत क्लोज़ कर दी जाती है. पता नहीं चल रहा कि आगे क्या किया जाये.”
शहरों में लावारिस गायों की समस्या धीरे-धीरे एक बड़ा रूप ले रही हैं लेकिन अब हाइवेज़ पर भी इस तरह की स्थिति बनती है तो सुविधा के नाम पर जो टैक्स वसूला जा रहा है, उसका कुछ मतलब नहीं रहता!
आबू की यात्रा के दौरान ड्राइव कर रहे मेरे मित्र का कहना है “सबसे बड़ा डर है कि हाईवे छोटे-छोटे गांवों एवं कस्बों के बीच से निकलता है. ये इलाकें हमारे लिए नए होते हैं, ऐसे में यदि हमारी ग़लती ना भी हो और गाय को कुछ हो गया तो, जान आफ़त में आ सकती है. इसलिए हम धीरे-धीरे चलते हैं फिर भी हमें नहीं पता होता कि गाय कब-कहाँ-कैसे सामने से आ जाएगी! ख़ासकर ओवरटेक के समय आगे की सड़क दिखती नहीं ऐसे में अचानक गाय आगे खड़ी या बैठी हो तो चालक कण्ट्रोल खो सकता है!”
एक ड्राइवर के तौर पर सोचा जाए तो स्थिति कोहरे के समय और अधिक गंभीर हो सकती है!
इसी वर्ष अगस्त में, फिरोजाबाद के सिरसागंज क्षेत्र में एक बाइक चालक हाइवे से गुज़र रहा था तभी उसके सामने अचानक गाय आ गई जिसके कारण हादसे में युवक की वहीं मौत हो गई.
मई महीने में, लखनऊ-कानपुर हाईवे पर गाय के कारण एसटीएफ की गाड़ी हादसे का शिकार हुई थी. वह हादसा गाड़ी के सामने अचानक गाय के आने से हुआ था जिसमे चालक ने गाय को बचाने की कोशिश की, लेकिन ट्रक से टकराकर गाड़ी पलट गई. इस हादसे में एसटीएफ के हेड कांस्टेबल की मौत हो गई थी. जबकि प्रभारी समेत चार पुलिसकर्मी घायल हो गए थे.
छत्तीसगढ़ का बिलासपुर गायों की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं के लिए चर्चित है. प्रसाशन लावारिस गायों को सड़कों पर से हटाने में कितना नाकाम है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ट्रैफिक पुलिस ने सड़कों पर बैठने वाली गायों के सींगों पर रेडियम लगाना शुरू किया था ताकि रात में होने वाली दुर्घटनाओं में कमी आ सके.
2016 में बारां के राष्ट्रीय राजमार्ग-27 पर भंवरगढ़ के पास अज्ञात वाहन की टक्कर से 8 गोवंश की मृत्यु हो गई थी.
प्रस्तुत विषय को और अधिक समझने हेतु हमने ‘सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय’ को एक आर.टी.आई में राष्ट्रीय राजमार्गो पर गायों के कारण हुए अकस्मातों में गायों एवं नागरिकों की मृत्यु के सन्दर्भ में कुछ सवाल पूछे लेकिन प्रति-उत्तर में हमें बताया गया कि ‘मंत्रालय में इस विषय पर कोई जानकारी ही नहीं है एवं मांगी गई जानकारी को NIL माना जा सकता है.’

ख़ैर, पिछले वर्ष पंजाब गो-सेवा आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि “गायों के लावारिस घूमने के कारण सड़क हादसों में औसतन हर तीसरे दिन राज्य में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है.”
आयोग ने आगे जोड़ा था ‘जो रिकॉर्ड आए हैं उनके अनुसार पिछले ढाई साल में राज्य में कम से कम 300 लोगों की मौत गायों के कारण हुए सड़क हादसों में हुई है. वर्तमान समय में एक लाख छह हजार ऐसी गायें हैं जो राज्य के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर घूम रही हैं.’
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