हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह के कारोबार पर विवादास्पद रिपोर्ट छापने के बाद पॉपुलर हुई वेबसाइट – ‘द वायर’ की दूसरी रिपोर्ट्स को भी करीब से परखा जाए, तो हमें पता चलेगा कि इनकी पत्रकारिता भाजपा, संघ, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद के विरोध से शुरू होकर ‘दलितों का देश कहां है महराज?’ और ‘क्या जिग्नेश मेवाणी दलित राजनीति की नई उम्मीद हैं?’ जैसे मुद्दों पर आगे बढ़ती है.

अपनी सभी रिपोर्ट्स में थोथी हथकंडो से भरपूर वामपंथी विचारधारा की गंध छोड़ने वाली ‘द वायर’ की पत्रकार के साथ हुआ एक ऐसा वाकया सामने आया है, जिसके बाद एक बार फिर वामपंथी कुनबे का दोहरापन सबके सामने उजागर होता है.यह घटना 7 जनवरी की है, जब ‘द वायर’ की पत्रकार ‘दमयंती धर’ अपने एक साथी पत्रकार के साथ अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज के एक तीसरे वर्ष में रेसीडेंट डॉक्टर एम मरिराज के मामले को कवर कर रही थीं, जिन्होंने 9 लोगों के खिलाफ जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था. दमयंती के अनुसार, जब वह जाँच-पड़ताल कर रही थीं, तब उन्हें डॉक्टर मरिराज के खिलाफ कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जिसके बाद साबित हो जाता है कि मरिराज के कुछ आरोप बेबुनियाद हैं.
दमयंती जब डॉक्टर मरिराज का इंटरव्यू कर रही थीं, तभी दलित एक्टिविस्ट केवल राठौर की अगुवाई में दलितों की भीड़ कमरे में घुस आई और दमयंती व उसके साथी पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया. इस दौरान 15 से 20 दलित समुदाय से ताल्लुकात रखने वाले पुरुषों की भीड़ ने उन पर हमला कर, हाथापाई और गाली-गलौच शुरू कर दी. उनका प्रेस कार्ड और मोबाइल फोन छीन लिए गए और रिकॉर्डिंग भी डिलीट कर दी गई.
इस घटना के सन्दर्भ में दमयंती ने वामपंथी कार्यकर्ताओं और संपादकों के पाखण्ड को उजागर करते हुए फेसबुक पर लिखा कि, “मैं इस हमले से उतनी आहत नहीं हुई हूँ जितनी वामपंथी कार्यकर्ताओं और संपादकों से मिली प्रतिक्रियाओं से आहत हुई हूँ, जिनको मैंने पहले प्रेस की स्वतंत्रता और भाषण की स्वतंत्रता के लिए खड़ा होते देखा था. मुझे इस घटना को एक पेशेवर संयोग की तरह लेने को कहा गया और इस बारे में नहीं लिखने और दलितों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करने की सलाह दी गई क्योंकि यह सब ‘मूवमेंट(वामपंथी मूवमेंट)’ के खिलाफ हो सकता है. कुछ लोगों ने तो मुझे यह बता कर डरा दिया कि अगर मैं शिकायत दर्ज करती हूं तो इसके काउंटर में भी शिकायत हो सकती है.”
दमयंती लिखती हैं, “जब मेरे साथ कोई खड़ा नहीं हुआ तो मैंने अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर को इसके बारे में लिखने का फैसला किया और मैं आभारी हूँ कि पुलिस मेरे लिए तेजी से काम कर रही है. इस हमले ने वामपंथी पत्रकारों-कार्यकर्ताओं और संपादकों के पाखंड को स्पष्ट कर दिया है.”
दमयंती का आरोप है कि केवल राठौड़ “ब्राह्मणवाद मनुवाद मीडिया” के नारे लगा रहा था और एट्रोसिटी के केस की धमकी दे रहा था. उसने, दमयंती का बचाव करने आये पुलिस कर्मचारी से उसका प्रेस कार्ड छीन लिया और कहा, “ब्राह्मण हो, धर हो, देखता हूँ मैं”. साथ ही डॉक्टर मरिराज के पक्ष में कहा कि, “ये विक्टिम है, आप इनका मदद नहीं कर सकते तो सवाल भी मत पूछो.”
दमयंती का कहना है कि, “पिछले कुछ दिनों में, इन तथाकथित कार्यकर्ता / दलित कार्यकर्ताओं द्वारा कम से कम 4 पत्रकारों पर हमला किया गया है लेकिन फिर भी इस पर चुप्पी साधी हुई है. मैं सोचती हूँ कि यदि पत्रकारों पर इस तरह का हमला दक्षिणपंथी तत्वों द्वारा हुआ होता तो ये लोग(वामपंथी पत्रकार-कार्यकर्ता और संपादक) क्या बोलते? मैंने कई पत्रकारों पर हुए हमलों को लेकर इन लोगो को आनंद में देखा है, क्योंकि वे पत्रकार फ़लां(विरोधी) चैनलों से थे.
एक दिन पहले की रिपोर्ट्स तक दमयंती अहमदाबाद की सिविल हॉस्पिटल में एडमिट है और इस घटना से खूब आहत है. दमयंती की पीड़ा उनके एक फेसबुक कमेंट से मालूम होती है, जब उनके एक मित्र ने उनसे पूछा कि, “क्या आप ठीक हैं?” जिसके जवाब में दमयंती ने लिखा, “नहीं!” इस एक शब्द मात्र में दमयंती की पीड़ा व घोर संताप की गूंज सुनाई दे रही है!
दलित कार्यकर्ताओं, संपादकों, एक्टिविस्टों और पत्रकारों को बेनकाब करती अपनी फेसबुक पोस्ट के 2 घंटे के भीतर दमयंती ने अपने मित्र की एक और पोस्ट साझा की है जिसमें उन्होंने लिखा है कि, “मेवानी, कन्हैया, उमर या कोई भी CPI नेता या कोई BSP नेता या कोई दलित कार्यकर्ता या समाजवादी / वामपंथी या कोई फासीवाद या सांप्रदायिकता विरोधी व्यक्ति या कोई राजदूत….आप हैं या नहीं …..”
वैसे दाद देनी होगी कि, ‘द वायर’ ने अपनी ही पत्रकार पर हुए इस तरह के हमले की खबर को अपनी वेबसाइट पर कहीं भी जगह न देकर अपनी विचारधारा के मजमून को आंच तक नहीं आने दी! अब देखते हैं, दमयंती इस लड़ाई को कहाँ तक ले जाती हैं?