2016 में गाज़ियाबाद के एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली 13 साल की प्रियांशी ने खुदकुशी कर ली थी, क्योंकि समय पर फ़ीस नहीं देने के कारण उसकी टीचर फ़ीस वसूलने के लिए घर पहुँच गई और फिर उसके पिता के साथ बहस करने लगी. बहस-बहस में दोनों के बीच लड़ाई हो गई और फिर पुलिस आई, तथा प्रियांशी के पिता को थाने ले गई. इस घटना का प्रियांशी के ज़हन पर ख़ूब गहरा असर पड़ा और उसने आत्महत्या कर ली.
प्रियांशी की मौत का कारण वो टीचर नहीं बल्कि निजी स्कूलों की ‘मनमानी फ़ीस वसूल’ करने की वृत्ति है, जिसने पूरे देश में लूट मचा रखी है! दिल्ली जैसे शहरों में तो वन टाइम फीस के नाम पर ये स्कूल 5-7 लाख तक की वसूली कर लेते हैं और हर साल मनमानी बढ़ोतरी भी होती रहती है. ऊँची फीस वसूली के लिए ये स्कूल, इंफ्रास्टचर और टीचर्स को ऊंची सैलरी देने के तर्क देते हैं लेकिन न्यूनतम वेतन में शिक्षकों के शोषण की बात किसी से छिपी नहीं है!
इसी साल, गुजरात के सूरत शहर में एक प्राइवेट स्कूल ने फीस बकाया होने की वजह से एक 7 साल के बच्चे को बंधक बना लिया था. इसके बाद माता-पिता पुलिस के पास गए और बच्चे को स्कूल वालों के चंगुल से मुक्त करवाया गया.
एक सर्वे में पाया गया कि 87% लोग चाहते हैं कि स्कूलों के फ़ीस लेने की प्रक्रिया को सरकार द्वारा रेग्युलेट किया जाना चाहिए और ग़ाज़ियाबाद और गुजरात जैसे अनेक वाकयों के बाद, इस पर कानून की मांग वाजिब बन जाती है.
गुजरात सेल्फ फिनांस्ड स्कूल (फीस नियामक) कानून:
इसी साल अप्रैल में, रुपाणी सरकार ने मनमानी फीस वसूलने वाली निजी स्कूलों पर लगाम कसने के लिए गुजरात सेल्फ फिनांस्ड स्कूल (फीस नियामक) कानून को लागू किया था. जिसके मुताबिक प्राइमरी स्कूल के लिए अधिकतम फीस 15,000 रुपये, सेकंडरी स्कूल के लिए 25,000 रुपये और हायर सेकंडरी स्कूल के लिए 27,000 रुपये तय की जा सकती है. इस कानून में बोल्ड अक्षरों में लिखा गया है कि “शिक्षा एक सेवा है कारोबार नहीं”. गुजरात के शिक्षामंत्री भूपेंद्र सिंह चुड़ास्मा ने इस क़ानून पर बोलते हुए कहा था कि “जिन्हें मुनाफा कमाना हैं वो कोई धंधा या कारोबार खोल लें.”
इस कानून के लागू होते ही प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने रोड़ा डाल दिया और इस पर रोक लगाने के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी.
27 दिसंबर को गुजरात हाईकोर्ट ने इस कानून को संवैधानिक रूप से सही ठहराया और इसके खिलाफ 40 याचिकाओं को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति वीएम पंचोली की खंडपीठ ने गुजरात सेल्फ फिनांस्ड स्कूल (फीस नियामक) कानून-2017 को जारी रखा. अदालत ने कहा कि “राज्य विधानसभा राज्य शिक्षा बोर्ड, सीबीएसई और आईसीएसई के लिए कानून बनाने को लेकर सक्षम है और ऐसा करने का उसे पूरा अधिकार है।”
अब इस कानून के तहत गुजरात में फीस रेगुलेशन कमेटी बनेगी जो स्कूलों पर टकटकी बाँध के नजर रखेगी. जो स्कूल नियमों का पालन नहीं करेंगे उन पर भारी जुर्माना लगेगा और ऐसी शिकायतें बार-बार आने पर स्कूल का रजिस्ट्रेशन ही रद्द कर दिया जाएगा.
दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल ने भी ‘मनमानी फ़ीस वसूली’ के मुद्दे को ख़ूब भुनाया था लेकिन अभी तक कोई ठोस क़दम नहीं उठा पाए. ना ही क़ानूनी शक्ल दे पाए.
लेकिन रुपाणी के शपथ ग्रहण के कुछ ही दिनों के भीतर हाईकोर्ट के इस फैसले ने जहाँ सरकार और अभिभावकों के चेहरे पर स्माइल ला दी है, वहीं प्राइवेट स्कूलों का मैनेजमेंट दांतों तले ऊँगली चबाने को मजबूर हो गया है. अब कुछ भी हो जाय प्राइवेट स्कूलों को रुपाणी के इस कानून की सुननी ही पड़ेगी.
गुजरात सरकार के आँकड़ों के अनुसार 15,927 स्कूल इस क़ानून के दायरे में आते हैं. जिसमें से 11,174 स्कूल पहले ही निर्धारित फ़ीस सीमा से कम फ़ीस ले रहे हैं, 841 स्कूलों ने फ़ीस नियमन समिति से सम्पर्क किया है, 2,000 से ज़्यादा स्कूलों ने अभी तक कोई हलफ़नामा नहीं दिया था और 2,300 से ज़्यादा स्कूलों ने सरकार के इस क़ानून को चुनौती दी थी.
और तो और, ख़बरें तो कुछ यूँ भी आ रही है कि मोदी सरकार देशभर में इस तरह के कानून को लाने की वकालत करने वाली है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जिस तरह गुजरात सरकार से फीस नियमन कानून का ड्राफ्ट मांगा है, अंदाज़ा लगा सकते हैं कि केंद्र सरकार भी उसी दिशा में काम कर रही है. यही नहीं उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने भी समीक्षा के लिए गुजरात से स्कूल फीस नियमन बिल की कॉपी मांगी है.
बहरहाल, गुजरात स्टेट डिपार्टमेंट की चीफ़ सेक्रेटरी सुनयना तोमर के अनुसार, राज्य सरकार इस क़ानून को अमलीजामा पहनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है और इसकी एक वेबसाइट भी शुरू हो जाएगी. इस वेबसाइट की ख़ासियत होगी कि इसके जरिये लोग स्कूलों में प्रवेश के लिए ऑनलाइन फार्म भर सकेंगे और इसमें स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों के बीच सीधा संपर्क नहीं होगा.