“दोस्तों, मैं बहुत छोटा आदमी हूँ जी। और एक बात मैं आपको बताता हूँ कि न मैं कभी रिश्वत लूँगा और न कभी रिश्वत दूँगा।” ये शब्द हैं अरविंद केजरीवाल जी के, दिल्ली चुनावों के समय के। हाँ, वो बात अलग है कि सर जी ने कांग्रेस से समर्थन भी लिया और कुछ कांग्रेसियों के लिए राज्यसभा के दरवाजे भी खोल दिये। एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म है An Insignificant Man, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के राजनीतिक उदय को दर्शाया गया है। इस फ़िल्म को देखने पर एक दौर ऐसा आएगा कि आपको लगने लगेगा कि केजरीवाल जी इंसान नहीं देवता हैं, उन्होंने अपना सारा जीवन जनहित कार्यों में लगा दिया है….परन्तु आज की हकीकत क्या है? सर जी आम आदमी करते-करते कब खास आदमी बन गए पता ही नहीं चला।
एक दौर था कि सर जी की छवि इंसानों से बढ़कर युगपुरुष वाली हो गयी थी, मैं बात कर रहा हूँ 2013 की। यह वो दौर था जब जनता पारम्परिक राजनेताओं को छोड़ बेहतर विकल्प को तलाश रही थी। अन्ना हजारे के आंदोलन से अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक जमीन मिली और जनता ने विकल्प अरविंद केजरीवाल के रूप में चुना, और चुने भी क्यों न…..
हमारे सर जी की अदाएं – XXL size की वो शर्ट, मफलर बांधने का अंदाज, मोजों के साथ सैंडल का वो कातिलाना मिश्रण। जनता के बीच जाकर मनमोहक वादे करना, बच्चों की कसम खा लेना और सबसे महत्वपूर्ण बात ईमानदारी की मूरत, हमारे सर जी….जनता को लगा कि भैया यही इंसान बदलाव ला सकता है।
लोकतंत्र में जनता सर्वेश्वर है….परन्तु दिल्ली के मालिक हमारे सर जी हैं। खैर जो भी हो हैं तो राजनेता ही, फिसल गए….बात कर रहा हूँ राज्यसभा सदस्यता की। आम आदमी पार्टी ने जिन तीन लोगों को उम्मीदवार बनाया है, उसमें 2 नाम उलझे हुए हैं। पार्टी से सिर्फ एक ही शख्स, संजय सिंह को चुना गया, बाकी दोनों नाम बाहरी हैं….
1 सुशील गुप्ता:
दिल्ली के बड़े कारोबारी, एक महीना पहले ही कांग्रेस से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी में आये हैं, जाहिर सी बात है उलझन तो है….
On 28th Nov, Sushil Gupta came to submit his resignation-
I asked him-“Why”?
“सर,मुझे राज्य सभा का वायदा करा है”-was his answer!
“संभव नहीं”-I smiled
“सर आप नहीं जानते..”-He smiledLess than 40 days-Less said the better!
Otherwise,Sushil is a good man known for his charity! pic.twitter.com/DgrYhVaFJA
— Ajay Maken (@ajaymaken) January 3, 2018
2. नारायणदास गुप्ता:
पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, बीते डेढ़ साल से पार्टी के ‘फंडिंग में गड़बड़ी’ के 30 करोड़ के झोल को यही महाशय सम्भाल रहे हैं। इस कर्मठता का इनाम उन्हें राज्यसभा सदस्यता के रूप में दिया गया….
राजनीतिक गलियारों से खबर आ रही है कि आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा की सदस्यता को बेचा है।
इन क्रियाकलापों को देखकर लगता है कि जिस स्वराज्य की बात हमारे केजरीवाल जी चुनावों से पहले करते थे, वह स्वराज(स्वयं का राज) उन्हें मिल गया। स्वच्छ और निर्मल छवि की बातें, भ्रष्टाचार का विरोध, ईमानदारी की पीपड़ी, गरीबी का रोना, जनता की सरकार….क्या-क्या नहीं हुआ था, उस समय! परन्तु अब बिल्कुल साफ है कि सब फर्जी किस्से थे, मक्कारी थी।
योगेंद्र यादव, जो कि आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे, बाद में वैचारिक मतभेदों की बजह से उन्हें पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया गया। उनका इस विषय पर बयान महत्वपूर्ण है –
पिछले तीन साल में मैंने ना जाने कितने लोगों को कहा कि अरविंद केजरीवाल में और जो भी दोष हों, कोई उसे ख़रीद नहीं सकता। इसीलिए कपिल मिश्रा के आरोप को मैंने ख़ारिज किया। आज समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या कहूँ? हैरान हूँ, स्तब्ध हूँ, शर्मसार भी। https://t.co/KIhc8P56Ka
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) January 3, 2018
क्या सर जी दिल्ली की जनता को यह बताएंगे कि कहाँ हैं वे 360 पन्नों के सबूत जो शीला दीक्षित को जेल पहुँचाने वाले थे, क्यों आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता पर तलवार लटकी है या क्यों सुशील गुप्ता को राज्यसभा के लिए चुना गया जबकि पार्टी के भीतर ही अनुभवी और योग्य लोग मौजूद थे। हर किसी से सबूत और कारण पूछने वाले हमारे प्रिय युगपुरुष जी आज खामोश क्यों हैं!


